________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
वर्ष
?
० अ० १७ कालिकद्वीपगत आकीर्णाश्ववक्तव्यता ६१२ जीन ' इति प्रसिद्धानाम्, मलयानां च मलय देशोत्पन्न वस्त्रविशेषाणाम्, 'मसू राण य' मसूरकाणां वस्त्रादिनिर्मित वृत्ताकारासन विशेषाणाम्, 'सिलावहाण य शिलापट्टानां= पट्टाकारचिकणशिलानां यावत् हंसगर्भाणां हंसः चतुरिन्द्रियकृमि विशेषः, गर्भः = तन्निर्वर्तित कोसि कारोरूतरूपः, तन्मय वस्त्राण्यपि हंसगर्भाणीत्यु
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मलयाण य मसूराण य सिलावट्टाण य जीव हंसगभाण य अन्नेसिं च फासिंदियाउ गाणं दुव्वोणं सगड़ीसागडं भरे ति) इसी तरह अनेक कोष्टपुटों को सुगंधित द्रव्य विशेषों को केतकीपुटों को सुगंधित पुष्पों यावत् एलापुटों को इलायचियों को, उखीरपुटों को, खश के समुदाय को- कुंकुमपुटों को तथा और भी अनेक, घ्राणेन्द्रिय को तृप्ति कारक द्रव्यों को उन लोगों ने गाडी और गांडों में भरा। बहुत सी खांड, बहुत से गुड़ बहुत सी शर्करा मिसरी बहुत सी मत्स्यण्डी - कालपी मिसरी बहुत से गुलकंद, बहुतसे पद्मपाक को तथा और भी जिह्वाइन्द्रिय को तृप्ति करने वाले द्रव्यों को उन लोगों ने गाड़ी और गाडों में भरा। इसी तरह स्पर्शन इन्द्रिय को आनंददेने वाले कोपविकों को रुई कपास - से भरे हुए प्रावरण विशेषों को रजाइयों को - कम्बलों को - रत्न कम्बलों को प्रावरणों को चहरों को नवलकों को ऊन के बने हुए पलेंचों को जीनों को मलयदेश के बने हुए वस्त्रों को, मसूरकों को वस्त्रों से बनाये हुए गोलाकार आसनों को शिलापट्टों को पट्टाकार चिकनी
-
-
--
-
मलयाणय मनूराणय सिलावहाण य जाव हंसगव्माण य अन्नेसि च फांसि दिपाउरगाणं दव्वाणं सगडी लागडं भरेंति )
આ પ્રમાણે ઘણા કષ્ટ પુટકાને-સુગધિત દ્રવ્ય-વિશેષાને, કેતકી પુટને કેવડાનાં પુષ્પાને યાવત્ એલાપુટાને, એલચીઓને, શીર પુટાને-ખશના समुदायाने, भुङ्कुम युटोने तेमन जी पशु धा धावेन्द्रिय ( नाऊ ) ने तृति પમાડનારા દ્રબ્યાને. તેઓએ ગાડી અને ગાડાંઓમાં ભર્યાં. બહુ જ પુષ્કળ प्रभाणुभां भांडे, गोण, साम्र-मिश्री, भत्त्यांडी-मासयी मिश्री, (उंची लवनी सा४२) ગુલક૪, પદ્મપાકા તેમજ ખીજા પશુ ઘણા જીહ્વા ઇન્દ્રિય (જીભ) ને તૃપ્તિ આપનાર દ્રવ્યેાને તે લેાકેાએ ગાડી અને ગાાએમાં ભર્યાં, આ પ્રમાણે સ્પર્શેન્દ્રિયને સુખ આપનારી કાયવિકાને રૂથી ભરેલા પ્રાવરણુ શેષાને-રજાઇએને, કામजोने, रत्न अभगोने, प्रावरणाने, याहरीने, नवसोने, अनथी मनाववाभां આવેલાં પઢેચાઓને જીનાને-મલય દેશના વોને, મસૂરકે ને-વસ્ત્રો વડે બનાવવામાં આવેલા શેઠળ આકાર આસનાને, શિલાપટ્ટાને-પટ્ટના આકારની
For Private and Personal Use Only