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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५६ सीताधर्मकथासू उपागत्य करतलपरिगृहीतदशनखं शिरआवर्त मस्तकेऽञ्जलिं कृत्वा, एवं त्रक्ष्यमाणप्रकारेण, अवादिषुः- एवं खलु हे तात ! वयं कृष्णेन निर्विषयाः = विषयाद मम देशाद् बहिर्निर्गताः आज्ञप्ताः = कृष्णोऽस्मान् देशाद् बहि निगन्तुमाज्ञप्तवानि - त्यर्थः । ततः खलु पाण्डू राजा तान् पञ्च पाण्डवान् एवमवादीत् -' कहण्णं' कथंकेन कारणेन खल हे पुत्र ! यूयं कृष्णेन निर्विषया आज्ञप्ताः ? ततः खलु पञ्च पाण्डवाः पाण्डुं राजानम् एवमवदन् - एवं खलु हे तात ! त्रयममरकङ्कातः प्रतिनिवृत्ता लवणसमुद्र' दोनिजोयणस्यं सहस्साई 'द्वियोजनशतसहस्राणि द्विलक्षयोजनपरिमितं ' वीइवइत्ता' व्यतिव्रजिताः - उल्लङ्घिताः । ततः खलु स कष्णोआगए (उवांगच्छता) वहां आकर के ( जेणेव पंडू ) वे जहां पांडु राजा थे ( तेणैव उवागच्छंति) वहां गये ( उवागच्छित्ता) वहां जाकर ( करयल एवं वयासी) उन्हों ने अपने २ दोंनों हाथों कों जोड़कर उनसे इस प्रकार कहा - ( एवं खलु ताओ !) हे पिताजी ! सुनो- (अम्हे कण्हेणं णिव्विसया आणत्ता ) हमलोगों को कृष्ण वासुदेव ने देश से निकल जने को कहा है (तरणं पंडुराया पंच पंडवे एवं वयासी) तब पांडु राजा ने उन पांचों पांडवों से इस प्रकार कहा - ( कहण्णं पुत्ता तुम्भे कण्हेणं वासुदेवेणं णिन्विसया आणत्ता) हे पुत्रो ! किस कारण को लेकर कृष्ण वासुदेव ने तुमलोगों को देश से बाहिर निकल जाने को कहा है (नएणं ते पंच पंडवा पंडुराया एवं वयासी) तब उन पांचों पांडवों ने पांडु राजा से इस प्रकार कहा - ( एवं खलु ताओ ! अम्हे अमरकंकाओ पडिणियन्ता लवणसमुहं दोन्नि जोयणसयसहस्साइं बीइवइसा) हे तात ! गच्छित्ता ) त्यां भावीने ( जेणेव पंडू ) तेथेो नयां पांडु शन्न हता ( तेणेव उवागच्छति ) त्यां गया. ( उत्रागच्छित्ता ) त्यां धने ( करयल० एवं वयासी) તેમણે પાતપેતાના બંને હાથો જોડીને તેમને આ પ્રમાણે વિન'તી કરી કે ( एवं खलु ताओ) हे पिता ! सांलणे, ( अम्हे कण्हेणं णिव्विसया आणत्ता ) युवासुदेवे अभने देशथी महारता रहेवानी आज्ञा आायी छे. (तएणं पंडु राया पंच पंडवे एवं वयासी) त्यारे पांडु रान्नये पांये पांडवोने या प्रमाणे धुं - ( कहणं पुत्ता तुम्भे कण्हेणं वासुदेवेणं णिव्विसया आणत्ता ) हे पुत्रो ! કૃષ્ણવાસુદેવે શા કારણથી તમને દેશમાંથી બહાર જતા રહેવાની આજ્ઞા આપી छे ? ( तणं ते पंच पंडवा पंडुराया एवं वयासी ) त्याने ते पांथे पांडवो पांडु शलने या प्रमाणे धुं है - ( एवं खलु ताओ ! अम्हे अमरकंकाओ पडिणियत्ता लवण समुहं दोन्नि जोयणसय सहस्साइं वोइवइला ) हे पिता ! सांलो, For Private and Personal Use Only
SR No.020354
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages872
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size26 MB
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