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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्मामृतवर्षिणी टीका मं० १६ द्रौपदी चरितनिरूपणम् करिता पोसहसालं अणुपविसइ अणुपविसित्ता सुट्ठियं देवं मणसि करेमाणै२ चिट्ठइ, तरणं कण्हस्स वासुदेवस्स अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि सुट्टिओ आगओ, भणदेवाणुपिया ! जं मए कायव्वं, तएणं से कण्हे वासुदेवे सुट्ठियं एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पिया ! दोवई देवी जाव पउमनाभस्त भवणंसि साहरिया तण्णं तुमं देवाणुप्पिया ! मम पंचहिं पंडवेहिं सद्धि अप्पछट्टस्स छण्द्दं रहाणं लवणसमुद्दे मग्गं वियरेहि, जण्णं अहं अमरकंकारायहाणा दोवईए कूवं गच्छामि, तरणं से सुट्टिए देवे कण्हं वासुदेवं एवं वयासीकिण्हं देवाणुपिया ! जहा चेव पउमणाभस्स रन्नो पुव्वसंगएणं देवेणं दोवई जाव संहरिया तहा चेव दोवई देविं धायइडाओ दीवाओ भारहाओ जाव हत्थिणापुरं साहरामि, उदाहु पउमणाभं रायं सपुरबलवाहणं लवणसमुद्दे पक्खिवामि ?, तरणं कण्हे वासुदेवे सुट्टियं देवं एवं वयासी -माणं तुमं देवाणुप्पिया ! जाव साहराहि तुमं णं देवापिया ! लवणसमुद्दे अप्पछट्टस्स छण्हं रहाणं मग्गं वियराहि, सयमेव णं अहं दोवईए कूवं गच्छामि, तणं से सुट्ठिए देवे कहं वासुदेवं एवं वयासी एवं होउ, पंचहिं पंडवेहिं अपछट्टुस्स छण्हं रहाणं लवणसमुद्दे मग्गं वियरs, तएण से कहे वासुदेवे चाउरंगिणसिणं पडिविसजेइ - पडिवि - सजित्ता पंचहिं पंडवेहिं सद्धिं अप्पछट्टे छहिं रहेहिं लवणसमुद्द For Private and Personal Use Only '
SR No.020354
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages872
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size26 MB
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