SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 510
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अमगारधर्मामृतवषिणी टीका अ० १६ द्रौपदीचरितनिरूपणम् । संमान्य यावत्-पतिविसर्जयति । ततः खलु सा कुन्ती देवी कृष्णेन वासुदेवेन प्रतिविसर्जिता सती यस्या एव दिशः प्रादुर्भूता तामेव दिशं प्रतिगिता ।।मू०२७॥ मूलम्-तएणं से कण्हे वासुदेवे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ सदावित्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुन्भे देवाणुप्पिया! बारवइं एवं जहा-पंडू तहा घोसणं घोसावेंति जाव पञ्चप्पिणंति, पंडुस्स जहा तएणं से कण्हे वासुदेवे अन्नया अंतो अंतेउरगए ओरोहे जाव विहरइ, इमं च णं कच्छुल्लए जाव समोवइए जाव णिसीइत्ता कण्हं वासुदेवं कुसलोदंतं पुच्छइ, तएणं से कण्हे वासुदेवे कच्छल्लं एवं वयासी-तुमं णं देवाणुप्पिया ! बहूणि गामा जाव अणुपविससि, तं अस्थि याई ते कहिं वि दोवइए देवीए सुती वाजाव उवलद्धा ?, तएणं से कच्छुल्ले कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! अन्नया कयाइं धायईसंडे दीवे पुरथिमद्धं दाहिण भरहवासं अवरकंकारायहाणि गए, तत्थ णं मए पउमनाभस्स रन्नो भवणंसि दोवई देवी जारिसिया दिट्रपुव्वा यावि होत्था तएणं कण्हे वासुदेवे कच्छुल्लं एवं वयासी-तुभं चेव णं देवाणुप्पिया ! एवं पुत्वकम्म, तएणं से कच्छल्लनारए कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ते समाणे उप्पयणिं विजं सन्मान किया, सत्कार सन्मान कर यावत् उन्हें प्रति विसर्जित कर दिया। इसके बाद वे कुंती देवी वहां से प्रतिविसर्जित होकर जिस दिशा से प्रकट हुई थीं-उसी दिशा की और चली गई। सू०२७॥ કરીને તેમને વિદાય કર્યા, ત્યારપછી તે કુંતીદેવી ત્યાંથી વિદાય મેળવીને જે દિશા તરફથી આવ્યાં હતાં તે જ તરફ પાછાં રવાના થયાં. એ સૂત્ર ૨૭ છે तएणं से कण्हे वासुदेवे इत्यादि ॥ सूत्र २८ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020354
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages872
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy