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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - ४०८ हाताधर्मकथासूत्रे ब्राह्मीशब्दस्य भाषार्थकत्वात् , उक्तं चामरकोशे-'ब्राह्मी तु भारती भाषा गीर्वाग्वाणी सरस्वती' इति । यद्वा-अष्टादशपकारा लिपिः श्रीमन्नाभेयजिनेन ब्राह्मीनामिका स्वमुतां प्रदर्शिता तस्मात् सा लिपिाह्मीत्युच्यते । लिपिज्ञानस्य श्रुतज्ञानोपयोगितया भावश्रुतहेतुं लिपिज्ञानरूपं भावलिपि वन्दमानः श्रीमुधर्मा स्वामी पाह-'नमो बभीए लिबीए' इति । श्रुतज्ञानं प्रति लिपिज्ञानं कारणं, यतो लिपिज्ञानेन तत्संकेतितशब्दस्मरणं, ततस्तदर्थज्ञानं जायते । तस्माद् भगवदुक्तार्थस्य प्रतिबोधनाय तन्दोधकशब्दजातरूपं श्रुतं लिपिबद्धं कर्तुकामः श्रुतबोधिकां लिवीए" इसका अर्थ इस प्रकारसे संगत बैठती है-अकार आदि वर्णात्मक भाषा के संकेतरूप लिपि का नाम ब्राह्मी लिपि है-ब्राह्मी शब्द इस अर्थ में प्रयुक्त हुआ है अमर कोष में भी यही बात कही है-" ब्राह्मी तु भारती भाषा गीर्वाग् वाणी सरस्वती"। अथश-श्री आदिनाथ प्रभु ने अपनी ब्राह्मी नाम की पुत्री को १८ प्रकार की लिपि कही थी इसलिये भी उस लिपि का नाम ब्राह्मी लिपि इस प्रकार से पड़ गया है। श्रुतज्ञान में उपयोगी होने से इस लिपि के ज्ञान को भावथुन का कारण माना है। इसलिये लिपि ज्ञानरूप भाव लिपि को वन्दन करते हुए श्री सुधर्मा स्वामी कहते हैं " नमो बंभीए लिवीए"। श्रुतज्ञान के प्रति लिपि ज्ञान कारण है- क्यों कि लिपि के ज्ञान से अकारादि वर्णास्मक लिपि रूप से संकेतित उस उस शब्द का स्मरण होता है और उससे उसके अर्थ का ज्ञान होता है। अतः भगवान द्वारा प्रतिपादित अर्थ को समझाने के लिये उस अर्थ का प्रतिपादन करने वाले शब्दों के આ પ્રમાણે સુસંગત બેસી શકે છે કે-અકાર વગેરે વર્ણાત્મક ભાષાના સંકેત રૂપ લિપિનું નામ બ્રાહ્મી લિપિ છે. બ્રાહ્મી શબ્દ “ભાષા ” આ અર્થમાં પ્રયુકત थयो छ सभा२शमा ५९] मे ४ वात ४उवाभां मावी छ है " ब्रह्मी तु भारती भाषा गीर्वागवाणी सरस्वती " अथवा तो श्री माहिनाथ प्रभुये पोताना બ્રાહ્મી નામની પુત્રીને અઢાર પ્રકારની લિપિઓ બતાવી હતી. એટલા માટે પણ આ લિપિનું નામ બ્રાહ્મી લિપિ પડી ગયું છે. શ્રુતજ્ઞાનમાં ઉપયોગી હોવાથી આ લિપિના જ્ઞાનને ભાવતનું કારણ માનવામાં આવ્યું છે. એથી લિપિજ્ઞાન ३५ भापतिपिने वाहन ४२di श्रीसुधारवामी ४ छ है "नमो बभीए लिवीए" શ્રતજ્ઞાનનાં પ્રતિ લિપિજ્ઞાન કારણ છે કેમકે લિપિના જ્ઞાનથી અકાર વગેરે વર્ણાત્મક લિપિ રૂપથી સંકેતિત તે શબ્દનું સ્મરણ થાય છે. અને તેનાથી તેના અર્થનું જ્ઞાન થાય છે એટલા માટે ભગવાન દ્વારા પ્રતિપાદિત અને સમજાવવા માટે તે અર્થનું For Private and Personal Use Only
SR No.020354
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages872
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size26 MB
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