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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाताधर्मकथानमत्र 'अकुतोभयं' इत्यस्य-" अणुपालिज्जा" इत्यनेनान्वयाद् अकुतोभयंसंयमम् अनुपालयेदित्यपि भगवदाज्ञैव, तथा च संयमस्याऽऽराध्यतया विधानात् संयमस्य धर्मत्वं बोध्यम् । ____ अपरं च-उत्तराध्ययनमूत्रो-"धम्माण कासवो मुहं " इत्युक्तम् " धम्माणं" धर्माणां श्रुतधर्माणां चारित्रधर्माणां च " कासको" काश्यपः काश्यपगोत्रीयः श्रीमहावीरवर्धमानस्वामी " मुई " मुखं वक्ता वर्तते । __ अहिंसादौ खलु भगवतोऽईत आज्ञा वर्तते, पश्यागमेषु । यथा-आचाराङ्गसूत्रे " से बेमि-जे य अतीता, जे य पडुप्पन्ना, जे य आगमिस्सा अरहता भगवंतो, ते सव्वेवि एवमाइक्वंति एवं भासंति एवं पण्णवेति एवं परूवेति'अक्रतोभयं' इस पद का “ अणुपालिजा" इस क्रियापद के साथ अन्वय करने से यह अर्थ होता है कि अकुतोभयरूप संयम का पालन करना चाहिये, यह भी जय भगवान को आज्ञा ही है तो इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि भगवान को आज्ञा से संयम आराधन करने लायक होने से धर्म रूप है। अपरं च-उत्तराध्ययन सूत्र में “ धम्माणं कासबो मुहं " यह कहा है इसका भाव यह है कि श्रुत एवं चारित्र धर्मों के मुख-वक्ता-काश्यय गोत्रीय श्री महावीर वर्धमान स्वामी हैं । देखो उन्हों ने आगमों में अहिंसादिक महाव्रतों के पालने का मुमुक्षुओं मोक्षाभिलाषियों के लिये इस प्रकार आज्ञा प्रदान की है " से बेमि-जे य अतीता जे य पडुप्पन्ना जे य आगमिस्सा अरहंता भगवंतो ते सव्वे वि एवमाइक्खंति एवं भासंति एवं पण्णवेति एवं परुति" सम्वे अकुतोभयं '' मा ५४नो ' अणुपालिज्जा' मालियापनी साथै अन्य ४२વાથી આ પ્રમાણે અર્થ થાય છે કે અકુભય રૂપ સંયમનું પાલન કરવું જોઈએ. આ પણ ભગવાનની જ આજ્ઞા છે તે એનાથી આ વાત સ્પષ્ટ થઈ જાય છે કે ભગવાનની આજ્ઞાથી સંયમ” આરધવા ગ્ય હોવાથી ધર્મરૂપ छ. अन जी उत्तराध्ययन सूत्र'मा “धम्माणं कासवो मुहं" मा प्रमा. ને ઉલ્લેખ છે. એને અર્થ એમ થાય છે કે કુત અને ચારિત્ર ધર્મોના મુખ્ય-વકતા-કાશ્યપ ગોત્રીય શ્રી મહાવીર વર્ધમાન સ્વામી છે. તેઓશ્રીએ અહિંસા વગેરે મહાવ્રતના પાલન કરનારા મેક્ષ ઈચ્છનારા લોકોને માટે આગમિમાં આ જાતની આજ્ઞા કરી છે કે – "से बेमि-जे य अतीता जे य पडुवन्ना जे य आगमिस्सा अरहता भगवतो “ सम्वे वि एषमाइक्वंति एवं भासंति एवं पण्णवेंति एवं परूवेति सम्वे For Private and Personal Use Only
SR No.020354
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages872
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size26 MB
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