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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४३ ममगारधर्मामृतर्षिगी टी० अ० १६ द्रौपदीचरितवर्णनम् काई आसणाई अत्थुयपच्चत्थुयाई रएह२ एयमाणत्तियं पच्चपिणह, ते वि जाव पच्चप्पिणति, तएणं ते वासुदेवपामुक्खा बहवे रायसहरसा कल्लं पाउ० पहाया जाव विभूसिया हत्थिखंधवरगया सकोरंट० सेयवरचामराहिं हयगय जाव परिवुडा सव्विड्डीए जाव रवेणं जेणेव संयंवरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता अणुपविसंति अणुपविसित्ता पत्तेयं२ नामंकिएसु आसणेसु निलीयंति दोवई रायवरकण्णं पडिवालेमाणा चिटुंति, तएणं से पंडुए राया कल्लं पहाए जाव विभूसिए हथिखंधवरगए सकोरंट० हयगय० कंपिल्लपुरे भझंमज्झेणं निग्गच्छंति जेणेव सयंवरमंडवे जेणेव वासुदेवपामुक्खा बहवे रायसहस्सा तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता तेसिं वासुदेवपामुक्खाणं करयल० वद्धावेत्ता कण्हस्स वासुदेवस्स सेयवरचामरं गहाय उववीयमाणे चिट्ठति ॥ सू० २०॥ __टीका-'तएणं से ' इत्यादि । ततः खलु स द्रुपदो राना कौटुम्बिकपुरुपान् शब्दयति, शब्दायत्वा एवमपादोत्-गच्छत खलु यूयं हे देवानुप्रियाः ! काम्पिल्यपुरस्य नगरस्य बहिः प्रदेशे गङ्गाया महानया अदूरसामन्ते-नातिदूरे नातितनापे एक महान्तं स्वयम्बरमण्डां कुरु कोशनित्याह-'अणेग' इत्यादि। 'तएग से वए राया कोडविय पुरि से ' इत्यादि । टोकार्थ-(तएगं) इसके बाद (दवए राया) द्रुपद राजा ने (कोडुंबिय पुरिसे सदावेइ ) कौटुम्विकपुरुषों को बुलाया (सदाविता एवं वयासी) बुलाकर उनसे इस प्रकार कहा-गच्छह णं तुमं देवाणुपिया ! कंपिल्लारे नयरे बहिया गंगाए महानईए अदूरसामंते एगं महं सयंवरमंडवं करेह, 'तएणं से दूवर राया कोडुबिय पुरिसे' इत्यादि st-(तपण) त्या२५७ी ( दूवए राया ) ६५४ गये (कोडुबियपुरिसे सहावेह) अमित पुषाने मोबा. ( सदाविना एवं वयासो) मावान तमन प्रभाग ४ (गच्छह ण तुमं देवाणुप्पियो ! कपिल्लरे नयरे बहिया गंगाए महानईए अदूरसामने गं मई सयंवरमयं करेह, अणेगखंभस For Private and Personal Use Only
SR No.020354
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages872
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size26 MB
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