SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 288
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir antaratit टीका अ० १६ द्रौपदीवरितवर्णनम् २६९ 6 सामुदायिकयां भेयां ताडितायां सत्यां समुद्रविजयममुखा दश दशाह यावत्महासेन प्रमुखाःपट्पञ्चाशद्बलवत्साहस्रयाः=पपञ्चाशत् - सहस्रनमिता बलवन्तो राजानः स्नाता यावद् सर्वालंकारविभूषिता यथाविभवर्द्धिसत्कारसमुदयेन अप्पेगइया ' अध्येके-यावद् = केचिद् हयारूढा = अश्वारूढाः केचिद् गजारूाः, केचिद् रथारूढाः केचिद् पादविहारचारेण यत्रैव कृष्णो वासुदेवस्तत्रोपागच्छंति, उपागत्य करतल० यावत् कृष्णं वासुदेवं जयेन विजयेन - जयविजय - शब्देन वर्धयन्ति । ततः खलु कृष्णो वासुदेवः कौटुम्बिकपुरुषान शब्दयति, शब्दयित्वा एवमादीन् मो देवानुमिया: 1 क्षिप्रमेव ' अभिसेक्कं ' आभिषेकयं गजबड़े बल से बजायी कि जिससे उससे बड़ी भारी आवाज निकली (तपणं ताए सामुदाइयाए मेरीए तालियाए समाणीए समुदविजय पामोक्खा दस दसारा जाव महासेण पामुक्खाओ छप्पणं बलवगसाहसीओ व्हाया जाय विभूसिया जहा विभव इड्डी सक्कारसमुदपणं अत्थेगइया जाव पायविहारचारेणं जेणेव कण्हे वासुदेवे तेव उबागच्छति ) इस तरह उस सामुयिकी भेरी के बजने पर समुद्रविजय आदि दश दशाह ने यावत् ५६ हजार महासेन प्रमुख बलिष्ठ राजाओं ने स्नान किया । यावत् समस्त अलंकारों से विभूषित होकर एवं सबके सब अपने विभव ऋद्धि और सत्कार के अनुसार जहां कृष्ण वासुदेव थे वहां आये। इनमें कितनेक घोड़ों पर कितनेक हाथियों पर कितने क रथों पर बैठकर आये और कितनेक पैदल ही चलकर आये ( उवागच्छित्ता करयल जात्र कण्हं वासुदेव जएणं विजएणं बद्धावेति, तएण से कहे वासुदेवे कोडुंबिय पुरिसे सहावेह सद्दवित्ता एवं वयासी, खियामेव तालियाए समाणोए समुदविजयपामोक्खा दस दसारा जाव महासेण पामुखाओ छपण बलवगसाहस्सीओ व्हाया जाव विभूसिया जहा विभव इड्ढी सकारसमुद्रण अप्पेगइया जाव पायविहारचारेण जेणेत्र कण्हे वासुदेवे तेव सवागच्छति भारीते ते सामुयिडी लेरी बगाडवामां भावी त्यारे समुद्र विभ्य વગેરે દશ દશાોએ યાવત પ↑ હજાર મહાસેન પ્રમુખ બલિષ્ઠ રાજાઓએ સ્નાન કર્યું. યાવત તેએ સર્વ સમસ્ત અલકારેાથી સુસજ્જ થઇને પોતાના વિભવ અને સત્કારની સાથે જ્યાં કૃષ્ણ-વાસુદેવ હતા ત્યાં ગયા. આમાં કેટલાક ઘેાડાઓ ઉપર, કેટલાક હાથીઓ ઉપર, કેટલાક રથે! ઉપર સવાર થઇને ત્યાં પહોંચ્યા હતા તા કેટલાક પગે ચાલીને જ કૃષ્ણુ-વાસુદેવની પાસે હાજર થયા ता. (उगच्छित्ता करवल जावक वासुदेवं जग बिजरगं बद्धावे ति सवर्ण से कन्दे वासुदेवे कोडु बियपुरिसे सदावेद सहावित्त एवं व्यासी खिप्पा For Private and Personal Use Only
SR No.020354
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages872
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy