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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६८ साताधर्मकथासूचे टीका-'तएणं से ' इत्यादि । ततः खलु स कृष्णो वासुदेवः कौटुम्बिकपुरुष शब्दयति, शब्दयित्वा एवमवादीद-गच्छ खलु त्वं हे देवानुप्रिय ! सभायां सुधर्मायां ' सामुदाइयं ' सामुदायिकि भेरि ताडय, ततः खलु स कौटुम्बिकपुरुषः करतल. यावद-मस्तकेऽञ्जलिं कृत्वा यावत् कृष्णस्य वासुदेवस्यैतमर्थ पतिशणोति, पतिश्रुत्य यौव सभायां सुधर्मायां 'सामुदाइया' सामुदायिकी भेरी तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य सामुदायिकी मेरी महता २ शब्देन ताडयति, येन महाशब्दो भवति, तथा भेरी साडयति स्मे ' त्यर्थः, ततस्तदनन्तरं खलु तस्यां 'तएणं से कण्हे वासुदेव' इत्यादि ॥ टीकार्थ-(तएणं इसके बाद (से कण्हे वासुदेवे) उन कृष्ण वासुदेवने ( कोडुंबियपुरिसं सदावेई ) अपने कौटुम्बिक पुरूप को बुलाया, बुलाकर ( एवं वयासी ) उनसे ऐसा कहा- (गच्छह णं तुमं देवाणुपिया ! सभाए सुहम्माए सामुदाइयं भेरि तालेहि ) हे देवानुप्रिय तुम सुधर्मा समामें जाओ और वहां जाकर सामुदाय की मेरी को बजाओ (तएणं से कोडंपिय पुरिसे करयल जाब कम्हस्त वासुदेवस्स एपमढे पडि सुणेइ, पडि णित्ता जेगेव सभाए सुहम्माए सानुदाइया भेरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सानुदाइयं भेरिं महयार सदेणं तालेह ) इस प्रकार की कृष्ण वासुदेव की आज्ञा को उस पुरुष ने बड़े विनय के साथ अपने दोनों हाथों को मस्तक पर रखकर स्वीकार कर लिया और स्वीकार करके फिर वह सुधर्मा सभा में जहां वह सोमुदायिकी भेरी थी यहां आया। वहां आकर उसने उस सामुदायिकी भेरी को इसतरह से 'तएणं से कण्हे वासुदेवे ' इत्यादि-- 2 -(तएण) त्या२पछी (से कण्हे वासुदेवे) ते ४-शु-पासुदेवे (कोडुबिय पुरिसं सदावेइ) पाताना टुमि ५३पाने माताच्या अने मातादीन ( एवं षयासी) तमन २ प्रमाणे ४ह्यु -( गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया! सभाए सुहम्माए सामुदाइय भेरि तालेहि ) पानुप्रिय ! तमे सुधर्मा सभामi and भने त्यो ने सामुदायिकी से का. ( तएणं से कोडुबियपुरिसे कर. यल जाव कण्हस्स वासुदेवस्स एयममट्ठ पडिसुणेइ पडिसुणित्ता जेणेव सभाए सुहम्माए सामुदाइया भेरी तेणेव उवागच्छइ उजागच्छित्ता सामुदाइय' भेरिं महया २ सद्देणं तालेइ) 0 तनी दृ-पासुहेवनी माज्ञाने ते ३५ भूमस न. પણે બંને હાથને મસ્તકે મૂકીને સ્વીકારી લીધી, સ્વીકાર કર્યા પછી તે ત્યાંથી જ્યાં સુધર્મા સભામાં સામુદાયિકી ભેરી હતી ત્યાં જઈને તેણે મોટે અવાજ थाय तेम त सामुदायिक सेशन माडी. (तएण ताए सामुदाइयाए भेरीए For Private and Personal Use Only
SR No.020354
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages872
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size26 MB
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