SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मनगारधर्मामृतवषिणी टोका अ० १५ नंदिफलस्वरूपनिरूपणम् १०७ अथवा ' भग्गलुग्गस्स ' भग्नरुग्गाय भग्नाय = त्रुटितहस्तपादाद्यवयवाय रुग्णाय = रोगाक्रान्ताय रोगग्रस्ताय वा 'साहेज्ज 'साहाय्यम् = औषधोपचारादि करणरूपं ददाति, तथा - सुख -- सुखेन = मुखपूर्वकं च तम् अहिच्छत्रां नगरों ' संपावेई' संप्रापयति संप्रापयिष्यतीत्यर्थः । तिकटु' इति कृत्वा एवमुच्चार्य द्वितीयमपि तृतीयमपि वारं घोषयत, घोषयित्वा मम 'एयमाणत्तियं एतामाज्ञप्तिकाम् एतद्रूपां ममाज्ञां ' पच्चप्पिगह' प्रत्यर्पयत-मदुक्तां घोषणां कृत्वा पुनर्मां निवेदयतेत्यर्थः । ततः खलु ते कौटुम्बिकपुरुषाः 'तथाऽस्तुसुहंसुहेणं अहिच्छत्तं संपावेइ, त्ति कटु दोच्चपि तच्चपि घासेह) पदत्राण (जूना) रहित है तो जूना (पदत्राण ) देगा जलपात्र रहित होगा उसे जलपात्र देगा, कलेवा (भोजन) रहित है तो कलेवा (भोजन) देगा, शम्प लपाथेय पूरक द्रव्यसे रहित है तो उसे शम्बल पाथेय-भाता पूरक द्रव्य देगा, अर्थात् चलते२ रीच मार्गमें ही जिसका कलेवा (भोजन) समाप्त हो जावेगा उसे उसके योग्य द्रव्यप्रदान करेगा, मार्गके मध्यमें चलते२ यदि वह घोड़ेसे गिर गया होगा, अथवा पैदल चलते२ यदि वह पैर फिसल कर गिर गया होगा और इस तरह से उसके हाथ पैर आदि टूट गये होंगे तो उसकी सार संभाल करेगा-रोगी की दवाई करेगा, और बड़े आनन्द के साथ उसे अहिच्छत्रा नगरीमें पहुँचा देगा। इस प्रकार की इम घोषणा को तुम लोग दो तीन बार करना । और (घोसित्ता मम एयमाणत्तियं पच्चपिपणह ) करके फिर हमें पीछे इमकी खबर देना (तएणं ते कौटुंबियपुरिसा जाव एवं क्यासी हंदि सुणंतु भांतो चंपा भग्गलुग्गस्स साहेज्नं दलयइ, सुहं सुहेणं अहिच्छत्तं संपावेइ, त्ति कटु दोच पि त चंपि घोसे ह ) જોડા વગરનો હશે તેને જોડા આપશે, જમવાની સગવડ હશે નહિ તેને જમવાની સગવડ કરી આપશે. શંબલ-પાથેય-પૂરક દ્રવ્ય વગરનો હશે તેને શંબલ-પાથેય-પૂરક દ્રવ્ય આપશે. એટલે કે માર્ગમાં અધવચ્ચે ભાતું ખલાસ થઈ ગયું હશે તેને યોગ્ય ધન આપશે. માર્ગમાં અધવચ્ચે ચાલતાં ચાલતાં જે તે ઘોડા ઉપરથી પડી જશે અથવા પગે ચાલતાં ચાલતાં જે તે પગ લપસવાથી પડી જશે અને તેથી તેના હાથ પગ વગેરે. ભાંગી ગયા હશે તે તેની તે સઋષા કરશે-રોગની દવા કરશે અને સુખેથી તેને અહિચ્છત્રા નગરીમાં પહોંચાउश. माशते तमे मे जग मत घोषणा ४२॥ अने (घोसित्ता मम एयमाण त्तियं पच्चप्पिणह ) घोषणा ४२शन समन म २ पापा. (तएणं ते कोडुबियपुरिसा जाव एवं वयासी हंदि सुगंतु भवंतो चंपानयरी For Private and Personal Use Only
SR No.020354
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages872
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy