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ज्ञाताधर्मकथासूत्रे
मूलम् - तणं से कण्हे वासुदेवे थावच्चापुत्तेणं एवं वुत्ते समाणे कोडुंबिय पुरिसे सदावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासीगच्छहणं देवाप्पिया! वारवइए नयरएि सिंघाडगतियग चउर जाव हरिथखंधवरगया महया महया सदेणं उग्घोसेमाणा २ उग्घोसणं करेह
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एवं खलु देवानुष्पिया ! थावच्चापुत्ते संसारभउठिवग्गे भीए जम्मणमरणाणं इच्छइ अरहतो अरिट्ठनेमिस्स अंतिए मुंडे भविता पव्वइत्तए तं जो खलु देवाणुप्पिया राया वा जुवराया वा देवी वा कुमारे वा ईसरे वा तलवरे वा कोडुंबिय माडंबिय इब्भसेहि-- सेणावइसत्थवाहे वा थावच्चापुत्तं पव्वयंतमणुपव्वयंति तस्स णं कण्हे वासुदेवे अणुजाणइ, पच्छातुरस्सविय से मित्तनाइ । नियगसंबंधि परिजणस्स जोगखेमं वहमाणं पडिवहति तिकट्टु घोसणं घोसेह जाव घोसंति ॥सू०१४॥
टीका- ' तरणं से कहे ' इत्यादि । ततः खलु स कृष्णवासुदेवः स्थापत्या पुत्रेणैवमुक्तः सन् कौटुम्बिक पुरुषान् शब्दयति = आह्वयति, शब्दयित्वा = आहूय, एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण, अवादीत् - हे देवानुप्रियाः । यूयं गच्छत द्वारवत्या नगर्या तएण से कहे वासुदेवे ' इत्यादि ।
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टीकार्थ - (तरणं) इसके बाद ( से कण्हे वासुदेवे ) वे कृष्ण वासुदेव जब ( थावच्चा पुत्तणं ) स्थापत्या पुत्र के द्वारा ( एवं बुत्ते समाणे ) इस प्रकार कहने पर उन्हों ने ( कोडुंबिय पुरिसे सहावेह) कौटुम्बिक पुरूषों को बुलाया (सद्दावित्ता एवं वयासी) और बुलाकर उनसे ऐसा कहा
(तरण से कण्हे वासुदेवे ) हत्याहि
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टीडार्थ – (तएण ) त्यारमा ( से कण्हे वासुदेवे ) ते सॄष्णु वासुदेवने न्यारे ( भावच्चापुत्त्रेण ) स्थापत्या पुत्रे ( एवं वुत्ते समोणे ) भारीते अह्युं त्यारे àng (sigfaa għà açıàş) Aglais yṣùia Malo, (acifaat,