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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org ወረረ ज्ञाताधर्मकथा सुधर्मास्वामी जम्बूस्वामीनं माह-' एवं खलु समणेणं ' इत्यादि, हे जम्बूः ! एवं खलु श्रमणेन भगवता महावीरेण त्रयोदशस्य ज्ञाताध्ययनस्य, अयम् = उक्तस्वरूपः, अर्थ प्रज्ञप्तः, ' इति ब्रवीमि ' - अस्य व्याख्या पूर्ववत् ॥ ० ॥ ८ ॥ इति श्री विश्वविख्यात - जगवल्लभ - प्रसिद्धवाचकपञ्चदशभाषाकलित ललितकछापालापक- प्रविशुद्धगद्यपद्यनैकग्रन्थनिर्मापक - वादिमानमर्दक- श्री शाहूच्छ प्रपतिकोल्हापुरराजप्रदत्त - जैनशास्त्राचार्य पदभूषित - कोल्हापुरराजगुरु- बालब्रह्मचारि - जैनाचार्य - जैनधर्मदिवाकरपूज्य श्री - घासीला प्रतिविरचितायां ' ज्ञाताधर्मकथाङ्ग ' सूत्रस्यानगारधर्मामृतव 6 3 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पिण्याख्यायां व्याख्यायां त्रयोदशमध्ययनं संपूर्णम् ॥ १३ ॥ होगा, समस्त कर्मकृत विकार से रहित होने के कारण स्वस्थ होगा और इस प्रकार समस्त दुःखों का वह अन्त करने वाला हो जावेगा । ( एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं तेरसमस्स नायज्झयणस अयम पण्णत्ते तिबेमि ) इस प्रकार जंबू स्वामी को समझाकर अब गौतम उन से कहते हैं हे जंबू ! श्रमण भगवान् महावीरने इस तेरहवें ज्ञाताध्ययन का उक्त रूप से अर्थ प्ररूपित किया है। मैंने जैसा उनके मुख से इसे सुना वैसा ही यह तुमसे कहा है । अपनी ओरसे मिलाकर इसमे कुछ नहीं कहा है | सूत्र ८ ॥ श्री जैनाचार्य जैनधर्म दिवाकर पूज्य श्री घासीलालजी महाराज कृत " ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र " की अनगारधर्मामृतवर्षिणी व्याख्याका तेरहवाँ अध्ययन समाप्त ॥ १२ ॥ ते सम्स सोखेोउने लघुनार थशे, समस्त ( अधा ) उर्भाथी भुक्त थशे, સમસ્ત કમ કૃત વિકાર વગર થયા બદલ તે સ્વસ્થ થશે અને આ રીતે બધા દુઃખાના ते अन्तपुरनार थर्ध ४शे ( एवं खलु जंबू ! समणेण भगवया महावीरेणं तेरमस्स नायज्झयणस्त्र अयमट्ठे पण्णत्ते त्ति बेभि ) या रीते यू स्वाभीने समन्लवीने ગૌતમ તેમને કહે છે કે હું જ બૂ! શ્રમણુ ભગવાન મહાવીરે આ તેરમા જ્ઞાતાધ્યયનના પૂર્વોક્ત રૂપે અ પ્રરૂપિત કર્યાં છે. મેં જેવા તેમના મુખથી સાંભળ્યેા છે તેવા જ તમને કહ્યો છે. મે' મામાં પેાતાની મેળે ઉમેરીને કઇજ કશું નથી | સૂત્ર "" ८ ॥ 66 શ્રી જૈનાચાર્ય ઘાસીલાલજી મહારાજ કૃતજ્ઞાતાસૂત્રની અનગારધર્મામૃતવિષણી व्याभ्यातु तेरभुं व्यध्ययन समाप्त ॥ १३ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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