SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 843
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नारामृतवर्षिणी टीका अ० १३ नन्दमणिकारमयनिरूपणम् .. समानाह-हे गौतम ! दर्दुरस्य खलु देवस्य चत्वारि पल्योपमानि स्थितिः प्राप्ता । पुनगौतमःपृच्छति-' सेणं' इत्यादि स खलु हे भदन्त ! ददुरो देवरतस्माद् देव लोकाद् आयुः क्षयेण भवक्षयेण स्थिति क्षयेण चयं त्यक्त्वा कुत्र गमिष्यति ? कुत्र उत्पत्स्यते-उपपातं-जन्म प्राप्स्यति ? । भगवान् कथयति-' गोयमा!' इत्यादि। हे गौमत ! स खलु दर्दु रोदेवः आयुः क्षयेण भवक्षयेण स्थितिक्षयेण देवलोका. च्युतः सन् महाविदेहे वर्षे जन्म प्राप्य सेत्स्यति भोत्स्यति मोक्ष्यति परिनिर्वास्यति सर्वदुःखानामन्तं करिष्यति च । पण्णत्ता, से गं भंते ! ददुरे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं चयं चहत्ता कहिं गच्छिहिइ ?) हे भदंत ! ददुरदेव की वहां कितनी स्थिति हुई है ? प्रभु कहते हैं कि हे गौतम । चार पल्यापम की स्थिति उसकी वहां हुई है । पुनः गौतम उनसे पूछतें है कि हे भदन्त ! वह दर्दुर देव वहां से-उस देवलोक से-आयु के क्षय भवके क्षय एवं स्थिति के क्षय हो जाने पर शरीर का-देव संबन्धी श. रीर का-परित्याग कर कहां जावेगा ( कहिं उववज्जिहिई) कहां पर जन्म धारण करेगा? इस प्रश्न का उत्तर भगवान् ने उन्हें इस प्रकार दिया-(गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ, बुज्झिहिह, मुच्चिहिई, परिनिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणं अंतं करेहिंइय) गौतम! वह ददुर देव आयु के क्षय से, भव के क्षय से एवं स्थिति के क्षय से देवलोक से चवकर महाविदेह क्षेत्र में जन्म प्राप्तकर वहां से सिद्ध होगा, विमल केवल लोक से सकल लोकालोक का ज्ञान होगा, समस्त कर्मों से मुक्त पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता से णं भंते ! दद्दुरे देवे ताओ देव लोगाओ आउखएण भवरखएणं ठिइक्खएण' चयं चहत्ता कहिं गच्छिहिइ ?) महन्त ! त्यांवर દેવની કેટલી સ્થિતિ થઈ છે? પ્રભુ કહે છે કે હે ગૌતમ! તેની ચારભેપમ જેટલી સ્થિતિ થઈ છે. ગૌતમ ફરી તેઓશ્રીને પૂછે છે કે હે ભદન્ત તે દૂર દેવ ત્યાંથી-તે દેવકમાંથી-આયુષ્યના ક્ષય, ભવના ક્ષય, તેમજ સ્થિતિને ક્ષય थया माई शरीरने-समधी शरीरने त्याने ४यांग ? (कहिं उजवन्जिहिह) કયાં જન્મ પ્રાપ્ત કરશે? ભગવાને આ પ્રશ્નનો જવાબ આ પ્રમાણે આ કે (गोयमा ! महाविदेहे वासे सिशिहिइ, बुज्झिहिइ, मुच्चिहिइ, परिनिव्वाहिइ, सव्व दुक्खाण अंतं करेहिह य) 3 गौतम! ते २ व मापने क्षय या ote, ભવને ક્ષય થયા બાદ, અને સ્થિતિને ક્ષય થયા બાદ દેવકથી ચવીને મહાદે વિદેહ ક્ષેત્રમાં જન્મ પ્રાપ્ત કરીને ત્યાંથી જ સિદ્ધ થશે. વિમલ-કેવલ લેયી For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy