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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir से माताधर्मकथा निशम्य-हृदयेऽवधार्य हृष्टास्तुष्टा यावत् स्नाताः ' आविद्धवाग्धारियमल्लदामक लावा' आविद्धवग्धारियमाल्यदामकलापा आविद्धः परिधृतः 'वघारियमल्लदा. मकलावा ' प्रलम्बित पुष्पमाल्यमुक्तादि हाराणां कलापो येस्तै प्रलम्बितपुष्पमालामुक्तादि हारधारिण इत्यर्थः । 'वग्धारिय' इति देशीशब्दः प्रलम्बितार्थकः । अहतवत्थचंदणोकिन्नगायसरीरा ' अहतवस्त्रचन्दनोक्लिन्नगात्रशरीरा-अहतवस्त्राणि चन्दनोक्लिन्नगात्राणि येषु तानि तथाभूतानि शरीराणि येषां ते तेषां शरीराणि नूतनवसनयुक्तानि चन्दनानुलिप्तावयवकानि आसन्नित्यर्थः । नूतनवसनचन्दनानुले. पधारिण इति यावत् । अप्येकके-अप्येके केचन हयगताः अश्वारूढाः एवं=एके ने यावत् गणिका साहस्र ने भेरी के शब्द को सुनकर और उसे हृदय में अवधारित कर बहुत ही अधिक हर्ष से एवं संतोष से युक्त हो स्नान किया-स्नान कर (आविद्धवग्धारियदामकलावा ) उन्हों ने लंबी २ पुष्प मालाओ से युक्त मुक्तादि हारो को पहिरा " वग्धारिय" शब्द प्रलम्बित अर्थ का वाचक देशीय शब्द है। (अहतवत्थ चंदणोकिनगायसरीरा) नवीन २ वस्त्रों से एवं चंदन के लेप से शरीर को सज्जित किया। " जाव गणियासहस्साई" में जो (यावत् ) पद आया है-वह इस बात को कहता है कि समुद्र विजय आदि दश दशाहों के साथ (बलदेव प्रमुख, पांचमहावीरों ने उग्रसेन आदि १६सोलह हजार राजा ओंने, ३॥ सढे तीन करोड यदव कुमारोंने,६०साठ हजार दुर्दान्त शाम्बा. दिकोंना २१इक्कीस हजार वीरसेन प्रमुख वीरों ने,५६छप्पन हजार बलवंत महासे नोदिकोने तथा रुक्मिणी प्रमुख ३२ पत्तीस हजार महिलाओंने વગેરે દશ દશાહએ અને ગણિકા સાહસ્રોએ ભરીને અવાજ સાંભળીને અને તેને હૃદયમાં અવધારિત કરીને બહુજ હર્ષ તેમજ સંતોષ યુક્ત થઈને સ્નાન ज्यु, स्नान शन " आविद्धवग्धारियदामकलावा " तभणे inी भी પુષ્પમાળાઓ વાળા મોતી વગેરેના હારે ધારણ કર્યા વાગ્ધારિય શબ્દ પ્રલमित (टती) अथ सूयबना२ ३शीय ५४ छ. " अहतवत्थ चंदणोकिन्नसरीरा" नai ki पसी तमस यंहनना बेपाथी पाताना शरीरने तमो आयु. " जाव गणियासहस्साई" भार “ यावत् " ७४ छ, તે એમ સૂચવે છે કે સમુદ્રવિજ્ય વગેરે દશ દશોંની સાથે બળદેવ પ્રમુખ પાંચમહાવીરાએ, ઉગ્રસેન વગેરે સેળ હજાર રાજાઓએ સાડા ત્રણ કરોડ યાદવ કુમારએ, છ હજાર દુર્દાત શાંબાદિકેએ એકવીસ હજાર વીરસેન પ્રમુખ વીરેએ, છપ્પન હજાર બળવાન મહાસેન વગેરેએ તેમજ રુકિમણી પ્રસંગ * બત્રીસ હજાર મહિલાઓએ પણ તેમની જેમ હર્ષિત અને સંતુષ્ટ થઈને નાન For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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