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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मनंगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ०५ समवरणे कृष्णगमनादिनिरूपणम् । निष्क्राम्य यौव सुधर्मासभा, यौव कौमुदिका भेरी, विद्यते तत्रैवोपागच्छन्ति, उपागत्य ता मेघौघरसितांगम्भीरां मधुरशब्दां कौमुदिकां भेरी ताडयन्तिबादयन्ति । ततः = तदनन्तरं निद्धमहुरगंभीरपडिसुएणंपिव' स्निग्धमधुरगम्भीर प्रतिश्रुतेनैव-स्निग्धं हृदयहर्षजनकं मधुरं गम्भीरं प्रतिश्रुतं प्रतिध्वनिर्यस्य स तथा, तेनेव केन ? 'सारइएणं ' शारदिकेन शरत्कालसमुद्भूतेन 'वलाहएणं पिव' बलाहकेनेव-मेघेनेव · अणुरसियं' अनुरसितम्-अनुगर्जितं भेर्या, शारदिकमेघगर्जितवद् भेरीध्वनि त इत्यर्थः ।। सू०८ ॥ मूलम्-तएणं तीसे कोमुइयाए भेरियाए तालियाए समाणीए बारवईए नयरीए नवजोयणवित्थिनाए दुवालसजोयणायामाए सिंघाडगतियचउक्कचच्चरकंदरदरी विवरकुहरगिरिसिहर नगरगोउरपासायदुवारभवणदेउलपडिसुयसयसहस्स संकुलं करेमाणे बारवई नयरिं सभितर बाहिरियं सव्वओ समंता से फिर वे कृष्ण वासुदेव के पास से चलदिये । (पडिनिक्खमित्ता जेणेव सभा सुहम्मा जेणेव कोमुदिया भेरी-तेणेव उवागच्छंति ) चलकर वे उस सुधर्मा सभा में जहां वह कोमुदिक नामकी भेरी रखी हुई थी वहां गये (उवागच्छित्ता तं मेघोघरसियं गंभीरंमहुरसइंकोमुदियं भेरि तालेंति ) वहां जाकर उन्होंने उस मेघो के समूह जैसी सान्द्र गंभीर मधुर शब्द वाली कौमुदिक भेरीको बजाया (तओ णिद्धमहुरगंभीर पडिसुएणं पिव सारइणं बलाहएणं पिव अणुरसियं भेरीए ) बजते ही उस भेरी की ध्वनी शरत्कालीन मेघ की गर्जना के समान हुई। ॥सू-८॥ मंति" माज्ञा आयो मा तेसो नी पासेथी महा२ नीच्या.” “ पडिकिक्ख मित्ता जेणेव सभा सुहम्मा जेणेव कोमुदिया भेरी तेणेव उवागच्छति " मन ત્યાંથી તેઓ સુધમ સભામાં જ્યાં કૌમુદક નામની ભેરી મૂકેલી હતી ત્યાં गया. “ उबागच्छित्ता तं मेघोषरसिय गंभीर महुरसई कोमुदिय भेरि ताले ति" ત્યાં જઈને તેમણે મેઘસમૂહના જેવી સાન્દ્ર ગંભીર અને મધુર શબ્દવાળી मुशि मेरीन usी "तओ णिद्धमहुरगंभीरपडिसुएणं पिव सारइणं बलाहएण पिव अणुरनिय भेरीए " ते रीमाथी २२६ *तुना मेवनी म भार सान्न ધ્વનિ રોમેર પ્રસરી ગયે. સૂ૮ For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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