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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir BER ज्ञाताधर्मकथाक 1 अधिकतरः =अत्यधिकः क्षान्त्या यावद् अधिकतरो ब्रह्मवर्यवान । एवं खलु एतेन क्रमेण 'परिमाणे २ ' परिवर्धमानः २ क्रमशो वृद्धिसम्पन्नो भूत्वा यावत् ' पडिएन्ने' प्रतिपूर्ण : = सम्मको ब्रह्मचर्यवासेन, क्षान्त्यादिसर्वगुणसम्पन्नो भवतीत्यर्थः । यथा चन्द्रो नित्यसंसर्गापगमेन शुक्लप्रतिपदमारभ्य प्रतिदिवसे कलाभिवर्धमानः सन् क्रमेण शुक्लचतुर्दश्यपेक्षया पूर्णिमायां वर्णादिना यावन्मण्डलेन परि पूर्णो भवति तथैव मुनिः कुगुरुसंसर्गादिपरित्यागेन चरित्रावरणव र्मक्षयोपशमादिना क्रमशः क्षान्त्यादि गुणवृद्धिं माप्नुवन् केवलज्ञान केवलदर्शनादिगुणैः परिपूर्णो भवतीति । एवं खलु जीवा अनेन प्रकारेण क्षान्त्यादि गुणवृद्धया वर्द्धन्ते वा तेषां हान्या वह क्षान्ति गुण से लेकर ब्रह्मचर्यवास तक के समस्त गुणों से परिपूर्ण हो जाता है । जिस प्रकार राहु के संसर्ग के अपनयन से शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर प्रतिदिन अपनी कलाओं से अभिवर्धमान होता हुआ चन्द्रमा क्रमशः शुक्लचतुर्दशो कि अपेक्षा पूर्णिमासी के दिन वर्गादि से लगाकर मण्डल तक की अपनी समस्त कलाओं से परिपूर्ण हो जाती है इसी तरह मुनि भी कुगुरु आदि के संसर्ग आदि के परित्यागसे तथा चारित्रावरण कर्म के क्षयोपशम आदि से क्रमशः क्षान्त्यादि गुणों की वृद्धि करता हुआ केवलज्ञान, केवल दर्शन आदि गुणों से परिपूर्ण हो जाता है । ( एवं खलु जीवा वज्रंति, वा हायंति वा, एवं खलु जंबू समणेण भगवता महावीरेण दसमस्स णायज्झयणस्स अगमट्ठे पण्णत्ते ચવાસ વગેરે ખધા ગુણૈાથી પરિપૂર્ણ થઇ જાય છે. જેમ રાહુના સ‘સંરહિત થઇને શુકલ પક્ષની એકમથી માંડીને દરરાજ પેાતાની કળાએની વૃદ્ધિ કરતા ચંદ્ર અનુક્રમે શુકલ પક્ષની ચૌદશ કરતાં પૂનમના દિવસે વધુ પરિમ`ડળ વગે. રેની પેાતાની સ`પૂર્ણ કળાએથી પરિપૂર્ણ થઈ જાય છે. તેમજ મુનિ પણ કુગુરુ વગેરેની સેાખત વગેરેને ત્યજીને તેમજ ચારિત્રવરણુ કમના ક્ષયૈાપશમ વગેરેથી અનુક્રમે પેાતાના ક્ષાંતિ વગેરે ગુણેાની વૃદ્ધિ કરતા કેવળજ્ઞાન, કેવળ દન વગેરે ગુણેાથી પરિપૂર્ણ થઇ જાય છે. ( एवं खलु जीवा बहुति, वा हायंति वा एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवता महावीरेण दसमस्स णायज्झयणस्स अयम पण्णत्ते तिबेमि ) For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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