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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हाताधर्म थासूचे सेसं तहेव सव्वं, तएणं तुम्भे देवाणुप्पिया ! कालमासे कालं किच्चा जयंते विमाणे उववण्णा, तत्थं णं तुब्भे देसूणाई बत्तीसाइं सागरोवमाइं ठिई, तएणं तुब्भं ताओ देवलोयाओ अणंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबूद्दीवेजाव साइं२ रजाइं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ, तएणं अहं देवाणुप्पिया! ताओ देवलोयाओ आउ. क्खएणं जाव दारियत्ताए पञ्चायाया। किं थ तयं पम्हटुं जं थ तया भो जयंत पवरांम । वुत्था समयं निबद्धं देवा ! तं संभरह जाइ ॥सू०३५॥ टीका-'तएणं ते' इत्यादि । ततस्तदनन्तर खलु ते जितशत्रुप्रमुखाः षडपि राजानः कल्ये-द्वितीयदिवसे पाउप्पभायाए' पादुः प्रभातायां प्रादुर्भूतः संजातः, प्रभातः-प्रातः कालो यस्याः सा प्रादुः प्रभाता तस्याम् अवसानं प्राप्ता. यामित्यर्थः रजन्यां-रात्रौ, ' जलंते सुरिए ' ज्वलति-उदिते सूर्ये, सुवर्णनिर्मितां मस्तकछिद्रां-मस्तकोपरिभागे छिद्रयुक्तां 'पउमुप्पलपिहाणं' पद्मोत्पलपिधाना= छिद्रोपरि कमलाच्छादनयुक्तां, प्रतिमां-प्रतिकृतिं पश्यन्ति, दृष्ट्वा, ' एषा-खलु मल्ली विदेहराजवरकन्या वर्तते ' इति कृत्वा इतिज्ञात्वा, मल्ल्या विदेहराजवर... तएणं ते जियसत्तू पामोक्खा इत्यादि। टीकार्थ-(तएण) इसके बाद (ते जियसत्तू पामोक्खा छप्पियगयाणो कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जलंते सूरिए) उन जितशत्रु प्रमुख छहों राजाओं ने दूसरे दिन जब रात्रि समाप्त हो चुकी और सूर्य का उदय अच्छी तरह हो चुका तब ( जालं तरेहिं ) खिडकियों के रन्ध्रों से (कणगमयं मत्थयछिइडं पउमुप्पलपिहाणं पडिमं पासइ) कनक मय उस प्रतिकृति को कि जिस के मस्तक में छिद्र था और वह छिद्र जिस ( तएण जियसत्तू पामोक्खा इत्यादि । साथ-(तएण) त्या२४ (ते जियसत्तू पामोक्खा छप्पियरायाणो कल्ल पाउप्पभयाए रयणीए जलते सुरिए) ततश प्रभुभ छ राजमाये भीर हिवसे न्यारे रात पूरी 45 अने सूर०८ मध्य पाभ्यो त्यारे ( जाल'तरेहि) मारीमोना आयामोमांथी (कणगमयं मत्थयछिड्डू पऽमुष्पलपिहाण पडिम पासइ) रेना भायामi sie. तुती सोनानी प्रातति (भूति) २४. ( एसणं मल्ली विदेहरायवरकण्णत्तिकदु मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए स्वे य For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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