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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शाताधर्मकथासूत्र स्पृष्टायां जलपक्षेपेण सिक्ता, दर्भोपरि 'पञ्चुत्थुयाए ' प्रत्यस्तृतायां प्रसारितायां 'मिसियायां' वृषिकायाम् आसने निषीदति-उपविशति, निषध मल्ल्या विदेहराजवरकन्यायाः पुरतो दानधर्म च यावद् विहरति दानधर्मशौचधर्मादि. कमाल्यापयन्ती प्रज्ञापयन्ती सा चोक्ला परिव्राजिका आस्ते स्म । ततः खलु मल्ली विदेहराजवरकन्या चोक्षां परिव्राजिकामेवमवादीत्-हे चोक्षे ! तब खलु किं मूळो धर्मः प्रज्ञप्तः ? ततः मल्लीवचन, श्रवणानन्तरं खलु सा परिव्राजकों के मठ से निकली और कितनीक परिव्राजिकायों को साथ लेकर मिथिला राजधानी के बीचों बीच से होकर वह जहां कुंभक राजा का भवन था तथा उस में जहां कन्यान्तः पुर और उस में भी विदेह राज की उत्तम कन्या मल्ली कुमारी थी वहां आई- ( उवागच्छित्ता उदय परि फासियाए दाभोवरि पच्चत्थुयाए भिसियाए निसियइ वहां आकर वह जल से सिञ्चित हुए तथा दर्भ के ऊपर विछाये गये आसन पर बैठ गई । (निसियित्ता मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए पुरी दोणधम्मं च जाव विहरइ ) बैठकर उसने विदेह रोयवर कन्याके समक्ष दान, धर्म शौचधर्म आदि की कथा की-प्ररूपणा की (तएणं मल्ली विदेहरायवर कन्ना-चोक्खं परिव्वाइयं एवं क्यासी) बाद में विदेह राज की उत्तम कन्या मल्लीकुमारी ने उस चोक्षा परिव्राजिका से इस प्रकार कहा-( तुन्भेणं चोक्खे किं मूलए धम्मे पण्णत्ते ? ) हे चोक्षे! तुम्हारे यहां धर्म किं मूलक ( किस मूलक ) प्रज्ञप्त हुआ है। ગેલા વસ્ત્રોને લઈને પરિવ્રાજકના મઠથી બહાર નીકળી અને કેટલીક પરિ વારિકાઓની સાથે મિથિલા રાજધાની વચ્ચે થઈને જ્યાં કુંભકરાજાને મહેલ હતું તેમજ જ્યાં કન્યાન્તઃપુર અને તેમાં પણ વિદેહરાજાની ઉત્તમ કન્યા મલ્લીકુમારી હતી ત્યાં પહોંચી. (उवागच्छित्ता उदय परिफासियाए दभोवरिपञ्चत्थुयाए भिसियाए निसियइ) ત્યાં આવીને તે પાણી છાંટેલા દર્ભના ઉપર પાથરવામાં આવેલા આસન ઉપર બેસી ગઈ. __ (निसित्ता मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए पुरओ दाणधम्मं च जाव विहरह) બેસીને તેણે વિદેહરાજવર કન્યાની સામે દાનધર્મ, શૌચધર્મ વગેરેની વ્યાખ્યા 3री. (चोक्खं परिवाइयं एवं वयासी) त्या२५छी विनी उत्तम न्या भसी. शुभाशय याक्षा परिवाने मा प्रभारी अधु-तुमेणं चोक्खे िलए धम्मे पण्णत्ते ?) या! तमारामा धमभूय प्रापित ४२वामा मा०यो छे. For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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