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शाताधर्म कथाङ्गसूत्रे
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सरासिम हिसकालगं ' भ्रमर निकरवरमाषराशिमहिपकालकं तत्र भ्रमरनिकर इव= भ्रमरसमूह इव वरमापरापिरिव, महिष इव च यः कालकः = कृष्णवर्णकस्तं, 'भरि यमेवन्नं भृतमेघवर्ण= जलपूर्ण मेघघटावदतिनीलम् 'सुप्पण ' शूर्पनखं शूर्पवत् नखा यस्य स शूर्पनखस्तं, फालसदृशजिहवं, फालमिहाग्नौ प्रतापितं बोध्यम्, तत्सादृश्यं च वर्णेदैर्घ्यदीप्त्यादिभिरिति, लम्बोष्ठं दीर्घौष्ठं, 'धवलवट्ट असिलिड तिक्ख थिरपी कुडिलदाढोवगूढवणं धवलवृत्ताश्लिष्ठतीक्ष्ण स्थिरपीनकुटिलदष्ट्रोपगूढ़वदनं ' धवलाभिः = श्वेताभिः, वृत्ताभिर्वर्तुलाभिरश्लिष्टाभिविरलाभिः ती क्ष्णाभिः स्थिराभिर्ब्रहाभिः उपचितत्वेन पीनाभिः = स्थूलाभिः वक्रतया कुटिलाभिश्च दंष्ट्राभिरूपगूढं व्याप्तं वदनं यस्य स तथा तम् अतिविशाल दंष्ट्रमित्यर्थः, 'विकोसियधारासिजुयलसमसरिसतणुय चंचलगलंतरसलोलचवलफुरुफुरेंत निल्लालियग्गजी' विक्रोशितधारासियुगल समसदृशतनु कचञ्चलग लद्रसलोलच पलफुरफुरायमाणनिर्लालिताग्रजिहम्, तत्र विकोशिता= अपनीतावरणा धारा ययोस्तौ विकोशितशिर के बाल बंधन रहित होने से इधर उधर बिखरे हुए थे ! इस का वर्णभ्रमर समूह उडद की राशि और महिष के श्रृंग जैसा काला था । ( भरिय मेहवन्नं ) जल से भरी हुई मेघ घटा के समान अत्यन्त श्याम था ।
( सुप्पणहं, फाल सरिस जीहं लंबोडं, धवलवट्ट आसिलिट्ठ तिक्ख थिर पीणकुडिलदाढोवगूढवणं) नख इस के सूप ( सूपड़ा ) जैसे थे | जिह्वा इस की अग्नि में लाल किये गये फाल के समान थी । ओष्ठ लंबे २ थे । इसका मुख श्वेत, गोल, २ विरली, नुकीली, स्थिर-दृढ-स्थूल और कुटिल टेढी २ दांडों से युक्त था ।
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( विकसिय धारासिजुयल समसरिसतणुयं चंचल गलत रस लोल चवलफुरुफुरेंत निल्लालियग्गजीहं ) इस की जिह्वा दोनों अग्र આમતેમ વિખેરાઈ ગયા હતા. તેનેારંગ ભમરાઓના ટોળા, અડદના ઢગલે ाने पाडाना शिंगडां वो अणो तो " भरिय मेहवन्न " पालीथी लरेसी મેઘની ઘટાઓની જેમ ખૂબજ કાળેા હતેા.
( सुप्पण, फालसरिसजीहं लंबोद्वं, धवलवह आसिलिट्ट, तिक्खथिरपीण कुडलदाढोवगूढवण )
તેના નખા સૂપડા જેવા હતા. તેની જીભ અગ્નિમાં લાલચેાળ થઈ ગયેલી હળની કેસ જેવી હતી તેના હાડ લાંખા હતા. તેનું માં સફેદ ગાળ મટોળ અણિયાળી, મજબૂત મેાટી તેમજ કુટિલ ત્રાંસી દાઢા વાળું હતું,
( विकसिय धारासियजुयलसमस रिसतणुयं चंचलगलंतर सलोलचवलफुरफुरेंत निल्लालियग्गजी )
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