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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org ३१३ -- अगरधर्मामृnefit टीका भ० ८ कोसाधिपतिस्वरूपनिरूपणम् विदेहरायवरकन्नगा सुपइट्टिय कुम्मुन्नयचारुचरणा वन्नओ, तणं पडिबुद्धी सुबुद्धिस्स अमच्चस्स अंतिए एयमहं सोच्चा णिसम्म सिरिदामगंडजणितहासे दूयं सद्दावेइ, सदावित्ता एवं बयासी - गच्छाहि णं तुमं देवाणुपिया ! मिहिलं रायहणि तत्थ णं कुंभग्गस्स रन्नो धूयं पभावईए देवीए अन्तयं मल्लि विदेहवररायकण्णगं मम भारियत्ताए वरेहि जतिविय णं सा सयं रज्जं सुक्का, तणं से दूए पडिबुद्धिणा रन्ना एवं वृत्ते समाणे हड० पडिसुणेइ, पडिणित्ता जेणेव सए गिहे जेणेव चाउरघंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटं आसरहं पडिक पावेइ, पडिकप्पावित्ता दुरुढ़े जाव हयगय महयाभडचडगरेणं साएयाओ णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता जेणेव विदेहजणवए जेणेव मिहिला रायहाणी तेणेव पहारेत्थ गमणाए ॥ सू०१८॥ टीका:- ततस्तदनन्तरं खलु प्रतिबुद्धिः प्रतिबुद्धिनामको राजा स्नातो मुकुटालङ्कारवस्त्र विभूपितः हस्तिस्कन्धवरगतः 'सकोरण्टमल्लदामेणं' सकोरण्टमाल्यदाम्ना कोरण्टाख्य पुष्परतवकवन्ति माल्यदामानि पुष्पाजस्तैः सहितेन छत्रेण त्रियमाणेन यावत् श्वेतवरचामरैरुद्वोजितैश्व सहितः, हयगजरथयोधमहा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'तरणं पडिबुद्धी पहाए' इत्यादि । टीकार्थ - (तरणं) इसके बाद (पडिबुद्धी) प्रतिबुद्धि राजाने ( पहाए ) स्नान किया बाद में वे मुकुट आदि अंलकारों से और राजसी वस्त्रों से अलंकृत होकर ( हविखंधवरगए ) अपने पह हाथी पर बैठ गये ( स कोरंट जाव सेयवरचामराहिं० हयगयरह जोहमहया भड , 'तरण' पडिबुद्धिहाए ' त्याहि टीडार्थ - (तएण ) त्यारणा (पडिबुद्धि) प्रतियुद्धि रामसे (व्हाए) स्नान રાજસી વસ્રોથી અલંકૃત થઈને पर सवार था. हयगयरह जोह महया भडचढकरेहिं કર્યું અને મુકુટ વગેરે આભૂષણે તેમજ ( हरिथख धरगए ) पोताना मास हाथी ( सकोरंट जाव सेयवर चामराहिं० साकेयनयरं० निग्गच्छा ) ज्ञा० ४० For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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