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भागारधर्मामृतषिणी टीका अ० ८ कोसलाधिपतिस्वरूपनिरूपणम ३०३ सामसान्खनप्रयोगः, दण्डारद्धं, भेदः त्रुपक्षे मन्त्रिसैनिकादिभिर्विरोधोत्पादनम् , तेषु कुशल := निपुणः । १.तस्तदनन्तरं र लु पद्मादायादेच्या अन्यदा कदाचित् नागयज्ञकश्चा प्यासीत-नागमहोत्सव दिवसः समायात इत्यर्थः । ततस्तदा खलु सा पद्मावती देवी नागयज्ञं नागमहोत्सवदिवसम् , उपस्थितं समायातं ज्ञात्वा यशैव प्रति बुद्धिम रक्ष्वाकु राजरतवोपारस्छति । उपागत्य करतल परिगृहीतं शिरआवतै दशनख मरत केऽञ्जलिं कृत्वा एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत्-हे स्वामिन् । एवं खलु मम कल्ये आगामिदिवसे नागयज्ञवश्वापि भविष्यति, सद्-तस्मात् इच्छामि
यह अमात्य साम, दण्ड, और भेद नीति में कुशल था। श, को शांति से वश करना यह साम नीति है, युद्ध से वश करना-उसे परास्त कर अपने आधिन धनाना-यह दण्ड निति है-शत्रु की सेना में मंत्री तथा सैनिकों में विरोध उत्पन्न कराना इस का नाम भेद है। (तएणं पउमावईए देवीए अन्नया कयाइं नागजन्नए यावि होत्था) एक समय की बात है कि पद्मावती देवी के यहां नागयज्ञ के महोत्सव का दिन आया। (तएणं सा पउमावई नागजन्न मुवट्टियं जाणित्ताजेणेव पडिबुद्धी-तेणेव उवागच्छइ)अतःवह पद्मावती देवी नाग यज्ञ-नागमहो त्सव-का दिन आया हुआ जान कर जहाँ अपने पति प्रतिबुद्धि राजा थे वहां गई । (उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं दसनहं मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासी) वहां जाकर उस ने राजा को दोनों हाथों की अंजलि बनाकर और मस्तक पर रखकर नमस्कार किया-बाद में वह इस प्रकार कहने लगी- ( एवं खलु सामी मम कल्लं नाग जन्नए
તે અમાત્ય સામ દંડ તેમજ ભેદ નીતિમાં કુશળ હતે. શત્રુને શાંતિથી વશકરે તે સામનીતિ છે. યુદ્ધ લડીને વશ કરે, તેને હરાવે અને પિતાને અધીન કરે તે દંડનીતિ તે. શત્રની સેનામાં મંત્રી તેમજ સૈનિકે માં विशष त्पन्न ४२व तसे नीति . (तएण पउमावईए देवीए अन्नया कयाई नागजन्नए याविहोत्था) से सभयनी पात छ है पद्मावती हवीने त्यां नागयज्ञ न भडास हिवस 24.व्य.. ( तएण सा पउमावई नागजन्न मुवद्वियं जाणित्ता जेणेव पडिबुद्धि तेणेव उवागच्छइ ) ना भात्स ना Eिसनी oney थतां पाती वी प्रतिसुद्ध रानी पासे ४. ( उवागच्छित्ता करयर परि. गाहियं सिरसावत्तं दसनहं मत्थए अंजलिं कट्ट एवं वयासी) त्यां न तेरे मन હાથની અંજલિ બનાવીને તેને મસ્તકે મૂકીને નમસ્કાર કર્યા અને ત્યારપછી કહ્યું
( एवं खलु सामी मम कल्लं नाग जन्नए यावि भविस्सइ तं इच्छामिणे
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