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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९२ शाताधर्भकथाङ्गसूत्रे यथा भगवती सूत्रे महावलो वर्णितस्तथेयं मल्ली विज्ञेयेत्यर्थः ।। अथ गाथा द्वयेन मल्लिं वर्णयति- सा वद्धइ ' इत्यादि सा वर्धमाना भवती धुलोकच्युता अनुपमश्रीका, दासीदासपरिश्ता परिकीर्णा पीठमर्दैः ॥ १ ॥ सा मल्ली वर्धमाना-अनुदिनं वृद्धि गता, भगवती-ऐश्वर्यादिगुणयुक्ता, धुलोकच्युता देवलोकादनुत्तरविमानाच्च्युता=अवतीर्णा, अनुपम श्रीका-अद्वितीय शोभायुक्ता, दासीदासपरिवृता, पीठमर्दैः वयस्यैः परिकीर्णा-परिकरवती बहुसहचरी युक्तेत्यर्थः। असितशिरोजा सुनयना बिम्बोष्ठी धवलदन्तपङ्क्तिका । वरकमलकोमलाङ्गी फुल्लोत्पलगन्धनिःश्वासा ॥ २ ॥ असित शिरोना भ्रमरयदतिश्यामवर्णकेशा, सुनयना = सुलोचना, बिम्बोष्ठी =विम्बवद्रक्तवर्णोष्ठी, धवलदन्तपङ्क्तिका धवला कुन्दमुक्तादिवच्छुक्लवर्णा दन्त पक्तिदन्तश्रेणिका यस्याः सा तथा, वरकमलकोमलाङ्गी वरकमलवत् – अशुष्क कमलपुष्पवत् कोमलानि मृदुलान्यङ्गानि यस्याः सा तथा, फुल्लोत्पलगन्धनिः श्वासा=विकसितनीलकमलवद्गन्धयुक्तनिःश्वासवती जाता ।। सू० १२ ॥ जिस प्रकार भगवती सूत्र में महाबल का वर्णन किया गया हैउसी प्रकार से इन मल्ली का भी वर्णन जानना चाहिये-सूत्रकार इसी यात का वर्णन " सा वद्धइ" इस गाथा द्वारा करते है-वे कहते है कि ये मल्लि नाम की कन्या प्रतिदिन वृद्धिंगत हो रही थी। ऐश्वर्य आदि गुणों से युक्त थी । अणुत्तर विमान से चव कर आई थी अनुपम श्री से संपन्न थी । दासी दास परिवृत्त थी और अनेक सहचरियों से युक्त थी। उनके बाल भ्रमर के समान अति श्याम वर्ण वाले थे। लोचन बडे सुहावने थे। बिम्ब जैसे लोल वर्ण वाले इनके दोनों ओष्ठ थे। दांतों की पङ्क्ति कुन्द तथा मुक्ता आदि के समान बिलकुल शुभ्र थी। अशुष्क लो . “सा वद्धइ" 0 43 सूत्रा२ मे पात २५०४ ४२५॥ માગે છે. તેઓ વર્ણન કરતાં કહે છે કે મલ્લિ નામે કન્યા દિવસે દિવસે મોટી થઈ રહી હતી. તે એશ્વર્ય વગેરે ગુણેથી પૂર્ણ હતી તે અનુત્તર વિમાનથી આવીને આવી હતી અને અનુપમ શ્રી સંપન્ન હતી. તે દાસી દાસેથી વીંટળાયેલી તેમજ ઘણું સહચરીએથી યુક્ત હતી. તેમના વાળ ભમરા જેવા અત્યંત કાળા હતા. તેમનાં નેત્રે મનોહર હતાં. બંને હોઠ બિંબફળ જેવા લાલ હતા. તેમની દંતપંક્તિ કુંદ તેમજ મતી For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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