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मनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० ८ महाबलषट् राजचरितनिरूपणम् २१
उस समय (सउणे सु जइएसु) काक आदि पक्षी, राजा आदि के विजय सूचक शब्द बोल रहे थे। ( मारुयसि) हवा भी (पयाणु कूलंसि ) प्रदक्षिणावर्त हो कर ( पवायसि ) वह रही थी। सुरभी और शीतल मन्द होने के कारण वह अनुकूल थी । ( भूमि सपिसि ) भूमि का स्पर्श वह कर रही थी । (कालंसि ) वह समय ऐसा था कि जिसमें ( निष्फनसस्समेहणीयंसि ) निष्पन्न सस्य से मेदिनी आच्छादितहरी भरी पनी हुई थी ( जणवए सु) जन पद भी (पमुइयपक्कीलीएसु) हर्ष से हर्षित बने हुए थे और विविध प्रकार की क्रीडोओ में रत थे( अद्धरत्तकालसमयंसि ) यह समय अर्द्ध रात्रि का था। (अस्सिणी णक्खत्तेणं जोगमुवगएणं) इस में अश्विनी नक्षत्र का चन्द्र के साथ योग हो रहा था (जे से हेमंताणं चउत्थे मासे अट्ठमे पक्खे फग्गुण सुद्धे ) यह अर्ध रात्रि का समय फालगुन मास के शुक्ल पक्ष का था । यह मास हेमंत काल के मासो में चौथा मास तथा ८ वां पक्ष है। (तस्स णं फरगुणसुद्धस्स चउत्थि पक्खे णं) ऐसी उस फाल्गुन शुक्ल चौथ की अर्द्धरात्रि के समय में वे महावल देव अपनी ३२ सागर की स्थिति पूर्ण करके उस जयंत नामक विमान से चव कर प्रभावती देवी
ते मते (सउणेसु जइएसु ) 1131 मेरे पक्षी Pion वगेरेन। भाटे मियने सूयबना। शva प्यारी २॥ ता. ( मारुयसि) ५न ५y (पयाणुकूलंसि ) प्रक्षित ने (पवायसी) पाते तो. शीत भन्ह भने सुगध युत पवन अनुण सागतो तो. ' भूमिसपिसि ' ते पृथ्वीन। २५० २तां पाते। तो ता. 'कालंसि' मावा सुभ समय तो भां (निप्पन्नसरसमेइणियसि ) नि०पन्न पानथी भडनी पृथ्वी' दी माप २६ थी८७ २ही ती. 'जणवएसु' न५६ ५५ ‘पमुइय पक्कीलीएसु' હર્ષમાં તરબોળ થઈ રહ્યું હતું. અને જાત જાતની ક્રીડાઓમાં મસ્ત હતું “અદ્ધरत्तकालसमयसि' मधी शतनामत ता. 'अस्सिणीणक्खत्तेण जोगमुवगए ण' मश्विनी नक्षत्रने यन्द्रनी साथे योग 25 २हो तो. 'जे से हे मंताणं चऊत्थे मासे अट्ठमे पक्खे फग्गुणसुद्धे ' ३ महिना ना शुख पक्ष यात હતું. આ મહિને હેમંત કાળના મહિનામાં ચોથે મહિને તેમજ આઠમ पक्ष छ. 'तस्सण फग्गुणसुद्धस्स चउत्थि पकखण' मेवी ५५ शुत ચોથના અડધી રાતના વખતે મહાબલ દેવ પિતાની બવીશ સાગરની સ્થિતિ પૂરી કરીને તે ત્યંત નામક વિમાનમાંથી ચવીને પ્રભાવતી દેવીના ગર્ભમાં
शा० ३६
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