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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir माताधर्मकथासूत्र समेच्चा' एकतः समेत्य 'णित्थरियव्वं ' निस्तरितव्यम् इतिकृत्वाऽन्योन्यस्यैतमथं प्रतिशुण्वन्ति, अस्मामिः सर्वमित्रमिलित्वा सर्व कार्य संपादनीयमिति निश्चित्य परस्परमेतमर्थ प्रतिज्ञातवन्त इत्यर्थः । तस्मिन् काले तस्मिन् समये इन्द्रकुम्मे उद्याने स्थविराः समवस्ताः समागतवन्तः ! परिषनिर्गता स्थविरान् वंदितुं वीतशोका नगरी निवासिनो लोका बहिनिःसृताः, महाबलो राजापि वन्दनाथै निर्गतः । महाबलः खलु धर्म श्रुत्वा प्रतिबुद्धः सन् स्थविरानेवमवादीद् युष्माकमन्तिके प्रबजितुमिच्छामि यन्नवर षडपि च वालवयस्यकान् आपृच्छामि बलभद्रं च कुमारं राज्ये स्थापयामि, ततः कार्य करना हो तो हम सब लोग मिलकर ही वह कार्य करेंगे इस प्रकार से आपस में वे सब वचन बद्ध हो गये । ( तेणं कालेणं तेणं समएणं) इतने में उस काल और उस समय में (इंदकुंभउज्जाणे थेरा समोसढा ) उस इंदकुंभ उद्यान में स्थविरों का आगमन हुआ-(परिसा निग्गया महब्यलेणं धम्म सोच्चा जं नवरं छप्पियवालवयंसए आपु. च्छामि बलभदं च कुमारं रज्जे ठावेमि ) स्थविरों का आगमन सुनकर वीतशोका नगरी को परिषद मुनियों को वंदना करने के लिये अपने २ घर से निकल कर उद्यान मे आई, महाबल राजा भी गये। धर्म का उपदेश हुआ महाबल राजा धर्म का उपदेश सुन कर प्रतिबोध को प्राप्त हो गया। उसने उसी समय स्थविरों से कहा-भदंत ! मैं आप लोगों के पास दीक्षा धारण करना चाहता हूँ-परन्तु मेरे जो बालसखा हैं मैं उन से · मा प्रमाणे तेसो प्रतिज्ञा (वयन ) मद्ध थया. (टेण कालेण तेणे समएणं) ते णे अने ते समये इंदकुभे उजाणे थेरा समोसढा ) न्द्र प्रधानम ! સ્થવિરે પધાર્યા. (परिसा निग्गया महब्बले ण धम्म सोच्चा जन वरं छप्पिय बालवयंसए आपूच्छामि बलभदंच कुमारं रज्जे ठावेमि ) સ્થવિરેનું, આગમન સાંભળીને પિત પિતાના સ્થાનેથી નીકળીને વાત શેકા નગરીના નાગરિકની પરિષદ મુનિની વંદન માટે ઉદ્યાનમાં આવી. મહાબલ રાજા પણ ત્યાં ગયા. મુનિઓએ ધર્મને ઉપદેશ આપ્યો. ધર્મોપદેશ શ્રવણ કરીને રાજા મહાબલને પ્રતિબંધ થયો. એટલે કે વૈરાગ્ય થયે. ન મહાબલે તે સમયે જ સ્થવિરેને વિનંતિ કરી “હે ભદંત! હું તમારી પાસેથી દીક્ષિત થવા ચાહું છું. પણ તે પહેલાં આ વિષે મારા બાલસખાઓને For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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