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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाताधर्मrARE अक्खए सगडीसागडणं निजाइए पासइ, पासित्ताहह. पडि. च्छइ, पडिच्छित्ता तस्सेव मित्तणाइ० चउण्ह य सुण्हाणं कुल. घरस्त पुरओ रोहिणियं सुण्हं तस्स कुलघरस्स बहुसु कज्जेसु य जाव रहस्सेसु य आपुच्छणिजं जाव सव्वकज्जवड्डावियं पमाणभूयं ठावेइ । ___ एवामेव समणाउसो!जाव पंच य से महाव्वया संवडिया भवंति से णं इह भवे चेव बहूर्ण समणाण० ४ अचणिजे जाव वीईवइस्सइ जहा व सा रोहिणिया। - एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं सत्तमस्स नायज्झयणस्त अयमढे पन्नते-सिबेमि ॥ __॥ सत्तमं नायज्झणं समत्तं ॥७॥ टीका-'तपणं तस्स ' इत्यादि । ततः खलु तस्य धन्यस्य धन्यसाया माइस्य पञ्चमे संवत्सरे 'परिणममामंसि' परिणम्यमाने संपूर्यमाणे सति पूर्वरा त्रापररात्रकालसमये अयमेतद्रूपः- आध्यात्मिकः आत्मनि विचारः यावत् मनोगतः संकल्पः समुदपद्यत-एवं खलु मया इओ' इत: अवतनादिवसात्याग अतीते पचमे वर्षे यतस्पां स्नुषाणां 'परिक्खमयाए' परीक्षणार्थाय-बुद्धि .. 'तएणं तस्स धण्णस्स' इत्यादि। टीकार्य-(तएणं.) इसके बाद (तस्स धण्णस्स) उस धन्य सार्थवाह को (पंचमयंसि संघच्छरंसि परिणममाणसि ) पांच वर्ष जय पूर्ण हो चुके, तब ( फुवरसावरत्तकालसमयंसि ) मध्यरात्रि के समय में (इमेयावर्षे अजमथिए जाव समुप्पज्जित्था ) इस प्रकार का आध्यात्मिक गाव मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ (एवं खलु मए इओ अईए पंच में "तएणं तस्स धण्णस्स" त्यादि - -(तएण) त्या२ ५६ (तस्स ‘धण्णस्स ) धन्य साईव ने (पंचायति संबसि परिणममासि) पांय वर्षा न्यारे पूरा या त्या३(पुष्वासा रतकालसमयंसि) मधी रात्रिना मते (इभेयारूवे अन्झथिए जाय समुःपज्जिथा આ જાતને આધ્યાત્મિક કાવત્ મને ગત સંકલ્પ ઉદ્દભ. . For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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