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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० ७ धन्यसार्थवाहचरितनिरूपणम् ૮૦ विसजेइ, तरणं सा उज्झियां घण्णस्स तहन्ति एयमहं पडिसुणेइ पडिणित्ता धण्णस्स सत्यवाहस्स हत्थाओं ते पंच सालि अक्खए गेहइ गेरिहत्ता एगंतमवक्कमइ एगंतमवक्कमियाए इमेयारूवे अज्झत्थिए० एवं खलु तयाणं कोट्टागारंसि बहवे पल्ला सालिणं पडिपुण्णा चिति । तं जया णं ममं ताओ इमे पंच सालि अक्खए जाइस्सइ तयाणं अहं पलंतराओ अंते पंच सालि अक्खए गहाय दाहामि त्तिकट्टु एवं संपेहेइ संपेहित्ता ते पंच सालि अक्खए एगंते एडेइ एडित्ता सकम्मसंजुत्ता जाया यावि होत्था || सू० ३ ॥ 4T Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir टीका- ' एवं संपेहेइ' इत्यादि - एवं उक्तरूपे संप्रेक्षतेमनसि विचार्यते 'संपेहित्ता संप्रेक्ष्य - पर्यालोच्य कल्ये प्रभातसमये, यावत् तेजसा ज्वलति, सूर्ये उगते संति मित्रज्ञाति स्वजनप्रमुखान् चतसृणां स्नुषाणां कुलगृहवर्ग च - पितृगृहसम्बन्धिमाता पित्रादीन्, आमंत्रयति निमन्त्रयति, आमन्त्र्य विपुलमशनादिकं चतुर्विधाहारं उप ' एवं संपेहेइ संपेहिता ' इत्यादि । टीकार्थ - ( एवं संपेt) धन्यसार्थवाह ने इस पूर्वोक्त प्रकार अपने मन में विचार किया ( संपेहिता ) विचार करके ( कल्लं जाव मित्तणाइ० चउन्हं सुहाणं कुलवरवग्गं आमंतेइ आमंतित्ता विउलं असणं ४ उबक्खड़ावेइ ) फिर उसने प्रातकाल होते ही सूर्य के उदय हो जाने पर मित्र, ज्ञाति, स्वजन आदि को और चारों ही पुत्रवधूओं के कुल वर्ग को उनके माता पिता आदिको को आमंत्रित किया । आमंत्रित गृह 'एव' संपेtइ, संपेहित्ता' त्याहि ! टीअर्थ - ( एव संपेहे इ) धन्यसार्थवाडे पूर्वेति ३ये पोताना मनमां वियार ये. (संपे हित्ता) विचार उरीने ( कल्लं जाव मित्तगाइ चउण्ह सुण्ड्राणं कुलघर ari आमंतेइ आमंतित्ता विउलं असणं ४ उवम्खडावे इ) सवारे सूर्य उदययामतां ની સાથે જ તેણે પેાતાના મિત્ર, જ્ઞાતિ, સ્વજત વગેરેને અને ચરે ચાર પુત્ર વચ્ચેના કુટુ'બીજનાને તેમના માતાપિતા વગેરેને જમવા માટે આમત્રિત For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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