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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org ૨૪ ज्ञाताधर्मकथासूत्रे " • अर्थादेतदवलम्बनैव सर्वस्यापि कुटुम्बस्यावस्थानम् ' पमाणे ' प्रमाणम् प्रत्यक्षादि प्रमाणवद् वस्तुतत्वप्रतिबोधकः 'आहारे' आधारः - आधारवत् कुटुम्बादीनामाश्रयः ' आलंबणे' आलम्बनं रज्यादिवत् विपद्गर्तपतज्जनोद्धारकतयाऽवलम्वनम्. 4 चक्खु ' चक्षुः नेत्रं तद्वत् सकलार्थप्रदर्शकः, यदुक्तं (मेधिः प्रमाणमाधारः आलम्बनं चक्षुरिति तदेव स्पष्टबोधार्थमौपम्यवाचिभूतशब्द संमेलनेन पुनरावर्तयति मेधिभूतः इत्यादि, यावदिति - यावच्छब्देन ( पमाणभूए आहारभूए आलंबणभूए चक्खूभूए) इत्येषां संग्रहो बोध्यः अर्थतः पुनरुक्तिदोष वारणं तु पूर्वत्र मेधिरिति आरोपित मेधिश्ववानित्याद्यर्थेन बोध्यम् । सव्वकज्जव tar ' सर्व कार्यवर्धकः सर्वेषा कार्याणां वर्धकः = सम्पादकोऽस्मि 'तं ' तद् प्रमाणरूप हूँ । बीहि कव आदिके कणों को मर्दन करने के लिये पशु जिस स्तंभ में बांधे जाते हैं उसका नाम मेघी है । मेधी के सहारे से जिस तरह पशुओं का अवस्थान रहता है उसी तरह उसके सहारे से समस्त कुटुंबका अवस्थान था इसलिये इसे मेधीरूप कहा गया है । प्रत्यक्ष आदि प्रमाण जैसे वस्तुतस्व के प्रतिबोधक होते हैं उसी तरह यह भी सब के लिये वस्तु का वास्तविक स्वरूप समझा दिया करता था अतः इसे प्रमाण रूप प्रकट किया है। मैं ही कुटुम्ब आदिका आश्रय भूत हू, रज्ज्वादिक की तरह विपत्तिरूप खड्डे में पतित जनो का उद्धारक होनेके कारण मैं उनका अवलंबन रूपहूँ । जिस प्रकार सामने के पदार्थ का यथार्थ प्रकाशन करता है उसी तरह यह भी मनुष्यों को राय लेने पर वास्तविक वस्तु के रहस्य से परिचित्त करा देता था । अतः इसे यहां चक्षुरूप कहा गया इसीलिये (चक्खु मेढीभूए जाव सम्वकज्जबडावर ) मेघि प्रमाण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir બળદો જે થાંભલાને ખાંધવામાં આવે છે. તેનું નામ મેઘી છે. મેધી જેમ પશુઆને માટે ખાસ કેન્દ્રરૂપમાં રહેલા આધાર હાયછે તેમજ તેપણુ બધાને માટે મેધી રૂપ હતા પ્રત્યક્ષ વગેરે પ્રમાણેા જેમ વસ્તુના તત્ત્વને ખતાવનારા હાય છે તેમજ ધન્યસાર્થવાહ પણ બધાને દરેકે દરેક વસ્તુનું સાચું સ્વરૂપ સમજાવતા હતા. તેથી તેને પ્રમાણ કહ્યો છે. કુટુંબના હુ જ આશ છું. હું. જ ઉંડા ખાડામાં પડેલા માણુસાના દોરીની જેમ ઉદ્ધારક છું એથી હું તેમના માટે અવલંબન (આધાર ) રૂપ છું. ક્ષુ જેમ સામેની વસ્તુને પ્રકાશિત કરે છે. તેમજ તે પણ સલાહ માટે આવેલા માણસાને વસ્તુના साया रहस्यधी पाडे उरतो तो भेटला भाटे ४ ( चक्खुमेढीभूए जान सन्कज्जव विए) भेधि प्रमाणु આધાર આલંબન અને ચક્ષુ આ પદોની For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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