SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 236
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूते समये राजगृहं नाम नगरमासीत् , नगरस्य बहिः सुभूमिभाग नामकमुद्यानं 'तत्थ णं' तत्र खलु राजगृहे नगरे धन्यनामा सार्थवाहः परिवसतिस्म स कीदृशः, ' अड़े' आहयः बहुधनधान्य समृद्धः, तस्य भदानाम्नी भार्या, सा किं भूता ? अ. हीनपञ्चन्द्रियशरीरा 'जाव सुधा' इह यावत्करणादिदं ज्ञातव्यं ' लक्षणवंजण गुणोववेया माणुम्माणपमा गपडिपुण्णमुजायसव्वंगसुंदरंगा, ससि सोमाकारा कांता पियदंसणा सुरुवा' इति एतानि पदानि व्याख्यातपूर्वाणि 'तस्स गं 'तस्य खलु धन्यस्य सार्थवाहस्य पुत्राः भद्रायाः भार्यायाः ‘ अत्तया' आत्मजा अङ्गजा-निजकुक्षिसंभवा इत्यर्थः चत्वारः सार्थवाहदारका आसन् , तद् यथा में ( रायगिहे नाम नयरे होत्था ) राजगृह नाम का नगर था (सुभूमिभागे उज्जाणे) वहां बाहिर में एक सुभूमि भाग नाम का उद्यान था। (तत्थणं रायगिहे धपणे नामं सत्यवाहे परिवता ) उस राजगृह में धन्य नाम का सार्थवाह रहता था। (अड्रे०भद्दा भारिया, अहीण पंचे दिय० जाव सुरूवा) यह बहुत अधिक धन घान्य से समृद्ध था। इसकी भद्रानाम की भायों थी। इसका शरीर अहीन पंचेन्द्रियों से परिपूर्ण था । सुन्दर अंगवाली थी।" यावत् शब्दसे" लक्खणवंजग गुणोववेचा, माणुम्माणपमाणपडिपुण्ण-सुजाय-सव्वंग सुरंगा, ससिसोमाकारा, कंना पिय सणा सुरूवा " इस पाठका संग्रह किया गया है कोई बार पहिले इन पदो का अर्थ लिखा जा चुका है। (तस्सणं धण्णस्स सत्थवाहस्स पुत्ता भद्दाप भारियाए अत्तया चत्तारि सत्थवाह दारया होत्था) उस धन्य सार्थवाह के भद्राभायों की कुक्षो से उत्पन्न नि३पित य छे. ( तेण कालेणं तेण समरण) ते णे भने ते सभये (रायगिहे नाम नगरे होत्था ) रागृह नामे नगर उतुं (सुभूमिभागे उज्जाणे) ते नगरनी पडा२ सुभूमिमा नामे मे धान तु (तत्थ णं रायगिहे धण्णेनामं सत्थवाहे परिवसह) | नगरमा बन्य नोभे साथ वार्ड २ता डतो. (अडूढे भद्दा भारिया अहीण पंचेदिय. जाव सुरूवा) ते घो। १ घन ધાન્યથી સમૃદ્ધ હતું. ભદ્રા નામે તેની પત્ની હતી. તેનું શરીર અહીન પંચેન્દ્રિયથી પરિપૂર્ણ હતું તે સુંદર અંગોવાળી હતી. “યાવત્ ” શબ્દથી मडी ( लक्खणवंजणगुणोववेया, माणुम्माणरमाणपडिपुण्णसुजायसव्यंगसुंदरंगा, ससिसोमाकारा, कंता पियदसणा सुरूवा ) 1 पाउने। सब थय। छ. या पहोना पडतां घी मत सथ५५८ ४२वामां माव्या . (तस्सगं धण्णस्स मत्थवाहस्स पुत्ता भदाए भारियाए अत्तया चत्तारि सत्यवाहदोरया होत्या ) धन्य સાર્થવાહને ભદ્રા ભાર્યાના ઉદર જન્મ પામેલાં ચાર સાર્થવાહ દારક પુત્ર-હતા. For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy