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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अमगारधर्मामृतवर्षिणो टीका अ० ५ शैलकराजचरितनिरूपणम् शब्दयति, आह्वयति । शब्दयित्वा-आहूय, एवं वक्ष्यमाणप्रकारेणावादीत्-क्षिप्रमेव -शीघ्रमेव भो ! देवानुपियाः ! मण्डूकस्य कुमारस्य महाथ-महाप्रयोजनकं यावत्राज्याभिषेकं 'उबढवेह' उपस्थापयत कुरुत । 'अभिसिंचंति' अभिषिञ्चन्ति, ततस्ते कौटुम्बिक पुरुषाः सुवर्णरजत कलशैर्मण्डूककुमारं स्नापयित्वा सीलङ्कार विभूषितं कृत्वा, तस्य राज्याभिषेकं कुर्वन्ति स्मेत्यर्थः । यावद् मण्डूको राजा जातः विहरति आस्ते ॥ मू०२७ ॥ मूलम्-तएणं से सेलए राया मंडुयं रायं आपुच्छइ, तएणं से मंडुए राया कोडुंबियपुरिसे सदावेइ, सदावित्ता एवं क्यासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सेलगपुरं नगरं आसित्त संमजिओवलितं गंधोदयसित्तं गंधवट्टिभूतं करेह य कारवेह य, एवं वयासी) इसके बाद उस शैलक राजा ने जब उन पांचसौ मंत्रियों को अपने समीप उपस्थित हुआ देखा तो देखकर वह बहुत अधिक प्रसन्न एवं संतुष्ट हुआ ओर उसी समय उसने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया-बुलाकर उनसे कहा (खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! मंडुयस्स कुमारस्स महत्थं जाव रायाभिसेयं उवट्टवेहरू, अभिसिंचइ जोव राया यावत् विहरइ) भो देवानुप्रियो ! तुम लोग शीध्र ही मंडुक कुमार का महार्थ साधक-महाप्रयोजन भूत-यावत् राज्याभिषेक करो। उन्हों ने उसका राज्याभिषेक किया अर्थात् सुवर्ण रजत के कलशों से मंडूक कुमार का अभिषेक कर और उसे समस्त अलंकारों से विभूषित कर राज्य पद में अभिषिक्त किया। इस तरह मंडूक कुमार राज्य पदासीन हो गया ॥ सूत्र २७॥ पुरिसे सदावेइ सहावित्ता एवं वयासी) त्या२ मा पोताना पांयसे। मत्रीमान આવેલા જોઈને રાજા ખૂબજ પ્રસન્ન થયા અને સંતુષ્ટ થયા રાજાએ તરત જ पोताना टुमि पुरुषाने मोसा-या भने मालावीन तेमने -( खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! मंडुयस्स-कुमारस्स महत्थ जाव रायाभिसेय उववेह अभिसि घहए जाव राया यावद् विहरइ) 3 हेवानुप्रियो ! तमे सपरे भडू२४ કુમરિને મહાઈ સાધક મહાપ્રયોજન ભૂત-રાજ્યાભિષેક કરે કૌટુંબિક પુરુ એ રાજાની આજ્ઞા પ્રમાણે જ મંડૂક રાજકુમાર રાજ્યભિષ કર્યો એટલે કે તેઓએ સેના રૂપાના કળશથી મંડૂક કુમારને અભિષેક કર્યો. અને બધા અલં शथी तेने शारीने राय सिडासन 6५२ साडया ॥ सूत्र “२७"॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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