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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० ५ शैलकराजचतनिरूपणम् व्यामः । हे देवानुप्रिय ! हे स्वामिन्! यथाऽस्माकं बहुषु कार्येषु - राज्याधिकृतकार्येषु च कारणेषु = राज्यरक्षणोपायेषु च यावत्-तथा खलु भवद्भिः सार्धं प्रव्रजितानामपि श्रमणानां बहुषु यावत् कार्यादिषु चक्षुर्भूतः । यथाऽस्माकमधिकतेषु भवान् विश्रामस्थानं, राज्यकार्येषु भवानेव नेत्रतुल्यो नेताऽस्ति तथा चारित्रपालन कार्येपि भवानेव नेताभविष्यतीतिभावः । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - हो कर दीक्षित होना चाहते हैं तो हे देवानुप्रिय ! अब हमलोगों का और कौन आपके सिवाय दूसरा आधार हो सकेगा कौन दुःखा दिक के समय हमलोगों के लिये आलंबन देने वाला होगा, क्यों कि हमारे लिये तो आपही एक शरण भूत हैं। अतः जब आप दीक्षित होना चाहते है तो हम लोग भी संसार भय से उद्विग्न हो कर आप के साथ ही दीक्षा संयम धारण करेंगे। ( जहा देवाणुप्पिया ! अम्हं बहुसु कज्जेसु य कारणेसु य जाव तहाणं पव्वतियणवि समणा f. बहुसु जांव चक्खुभूए) हे देवानुप्रिय ! जीस तरह आप हमलोगों के लिये अनेक राज्याधिकृत कार्यों में अनेक कारणों में राज्य संरक्षण के उपायों में चक्षुभूत रहे हैं उसी तरह आपके साथ प्रवृजित हुए हमलोगों के चारित्र पालन कार्य में भी आप ही नेता रहेंगे । (तरणं से सेलगे पंथगपामोक्खे पंचमंतिसए एवं वयासी ) मंत्रिमंडल की इस प्रकार बात सुनकर उस शैलक राजा ने उन पथक प्रमुख पांचसौ मंत्रियों से इस प्रकार कहा: For Private And Personal Use Only ત્રસ્ત થઇને દીક્ષા મેળવવાની ઈચ્છા રાખેાછે તે તમારા સિવાય અમારા બીજો કાણુ આધાર થશે ? આફતના વખતે અમને આશ્રય આપનાર કેણુ થશે ? અમારે માટે તે તમે જ શરણુ રૂપ છે, એટલે જ્યારે તમે દીક્ષિત થવાની ઈચ્છા રાખો છે. ત્યારે અમે લેાકા પણ આસ’સારથી ક'ટાળી ગયા છીએ તમારી साथै अभे यागु थास दीक्षा संयम धारण अरीशु ( जहा देवाणुपिया ! अम्' वहुसु कज्जेसु य कारणेसुय जोव तहाण पव्वतियाणवि समणाण बहुसु जाव चक्खुभूए) हे देवानुप्रिय ! तभे प्रेम सहीं सभारा भाटे ઘણા રાજવહીટના કામેામાં ઘણાં કારણેામાં-રાજ્ય સરક્ષણ વિષેના ઉપા ચામાં ચતુભૂત રહ્યા છે તેથી અમારી સાથે પ્રત્રજિત થઈને પણ અમે લેક ચારિત્રપાલન કાર્ય માં પણ તમે જ અમારા નેતા થએ એવી અમારી ઇચ્છા छे, (तरणं से सेलगे पंथगपामोक्खे पंचम तिसए एवं वयासी ) मंत्रीमा આ જાતના વિચારો સાંભળીને શૈલક રાજાએ તે પાંથક પ્રમુખ પાંચસે
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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