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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८८ www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे 6 तणं से सुए ' इत्यादि । टीका - ततः खलु स शुकः परिव्राजकः सुदर्शननामकं श्रेष्ठिनम् एवं = वक्ष्यमाणप्रकारेणावादीत् तत् तस्मान् गच्छामः खलु सुदर्शन | तत्र धर्माचार्यस्य स्थापत्यापुत्रस्यान्तिके प्रादुर्भवामः । ' इमाई च' इमान् अनन्तरमेव वक्ष्यमाणतया संनिकृष्टान, च शब्दादन्यांथ खलु एवद्रूपान् = वक्ष्यमाणस्वरूपान अर्थान्= अर्यमाणत्वाद अधिगम्यमानत्वादर्थाः भावा वक्ष्यमाणयात्रा यापनीयादयस्तदन्ये हेतून् अन्वयव्यतिरेकलक्षणहेतुना ज्ञायमानत्वाद हेतुरूपास्तान् प्रश्नान=प्रश्नविषयत्वात् प्रश्नरूपास्तान्, कारणानि = कारणं तत्पाधयुक्तिरूपम्, उपपत्तिमात्रं तद्विषयत्वाद् कारणानि तानि व्याकरणानि= सप्रमाणं व्याख्यायमानत्वात् व्याकरणानि च तानि पृच्छामः । तद्= तस्माद् यदि खलु मम स स्थाप 'तएण से सुए' इत्यादि । टीकार्थ- (i) इसके बाद (से सुए) उसशुक (परिव्वायए) परिवा क ने (दंसणं एवं वयासी) सुदर्शन से ऐसा कहा - ( तं गच्छामो णं सुदंसणा ! तव धम्मायरियस्स थावच्चापुत्तस्स अंतियं पाउन्भवामो) तो हे सुदर्शन ! मैं यहाँ से अब तुम्हारे धर्मचार्य स्थापत्यापुत्र के पास जाता हूँ । (इमाई च णं एयाख्वाइं अट्ठाई हेउई पसिणाई कारणाई वागरणाई पुच्छामो तं जड़णं मे से इमाई अट्ठाई जाव वागरह, तरणं अहं वंदामि नमसामि, अहमे से इमाई अट्ठाई जाव नो से वागरेह तएणं अहं एएहि चेव अहिं उहिं निष्पट्टपसिणं वागरणं करिस्सामि ) और इस . प्रकार के इन अर्थों को हेतुओं को, प्रश्नों को कारणों को, व्याकरणों को, उनसे पूछूंगा, यदि वे मेरे इन अर्थों का यावत् व्याकरणों प्रश्न तए णं से सुए इत्यादि ' For Private And Personal Use Only टीअर्थ (तएणं ) त्यार माह ( से सुए ) शु ( परिव्वायए) परिवा० ( सुदंस णं एवं वयासी) सुदर्शनने आ प्रमाणे उधुं - ( तं गच्छामो णं सुदंसणा ! तब धम्मायरियस थात्रच्चापुत्तस्स अंतिय पाउब्भवामो) हे सुदर्शन ! तो हवे महीं थी हु' सीधी तारा धर्मगुरु स्थापत्यायुत्रनी पासे ४ छु ( इमाइ च एयारूबाई' अट्ठाई हेउई पसिणोई कारणाई वागरणाई पुच्छामो तं जइण' मे से इमाइ, अठ्ठाइ, जाव वागरइ तरणं अहं वंदामि, नम॑सामि, अहमेसे इमाई' अट्ठाई जाब नो से वागरेइ तरणं अहं एएहिं चेत्र अहिं उहिं निप्पदुपसिणं वागरणं करिस्सामि ) तेभनी साथै हु' अर्थो, हेतुभो, प्रश्नो, अरलो, अने व्यारो। ना विषे यर्या उरीश ने ते भारा अर्थी, हेतुभो, अश्नो
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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