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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir माताधर्मकथासूत्रे मूकम्त एणं से थावच्चापुने पुरिससहस्सेहिं सद्धिं सयमेव पंचमुट्रियं लोयं करेइ जाव पवइए । तएणं से थावच्चापुत्ते अणगारे जाते इरियासमिए भासासमिए जाप विहरइ, तएणं से थावच्चापुत्ते अरहओ अरिहनेमिस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाइं चउदसपुवाइं अहिजइ, अहिजित्ता बहुहिं जाव चउत्थेणं विहरति ।। तएणं अरिहा अरिट्ठनेमी थावच्चापुत्तस्स अणगारस्स तं इन्भाइयं अणगारसहस्ससीसत्ताए दलयइ, तएणं से थावच्चापुत्ते अन्नया कयाइं अरहं अस्टिनेमि वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-इच्छामि णं भंते तुब्भेहिं अब्भणुनाउ समाणे सहस्सेणं अणगारेणं सद्धिं बहिया जणवयविहारं विहरित्तए, अहासुहं देवाणुप्पिआ ! तएणं से थावच्चापुत्ते अणगारसहस्सेणं सद्धिं तेणं उरालेणं उग्गेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥ सू० १७ ॥ 'तएणं से यावच्चापुत्ते ' इत्यादि। टीका-ततः तदनन्तरं खलु स स्थापत्यापुत्रः पुरुषसहस्रेण साधू स्वयमेव "तएणं से थावच्चा पुत्ते' इत्यादि । टोकार्थ-(तएणं) इसके बाद (से थावच्चा पुत्ते) उस स्थापत्या पुत्रने पुरिससहस्सेहिं सद्धिं सयमेव पंचमुट्टियं करेइ ) उन एक हजार दीक्षित पुरुषों के साथ अपने केशोंका पंचमुष्ठी लोंच किया-(जाव पव्वहए) यावत् (तरण से थावच्चा पुत्ते ) त्या tथ-(तएण') त्या२मा (से थावच्चापुत्ते) स्थापत्या पुत्र (पुरिखसहस्सेहि मद्धि सयमेव पंचमुट्ठिय लोय करेइ ) Elan पामेसा मे तर पुरुषानी साथै पाताना वागर्नु पाय भुडी बुंथन यु. (जाव पव्वइए) मनेर For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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