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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका. अ १. ४२ मेघमुनेः संलेखनानिरूपणम् हिं कडाईहिं थे सद्धिं विउलं पव्त्रयं सनियं२ दूरुहइ दूरुहित्ता सयमेव मेहघणसन्निगासं पुढविसिलापट्टयं पडिलेहेइ, पडिलेहित्ता उच्चार पासवणभूमिं पडिलेहेइ पडिलेहित्ता दब्भसंथारगं संथर, संथरिता दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहिता पुरत्थाभिमुहे संपलियं निसन्ने करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी - नमोऽत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं जाव संपत्ताणं, णमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव संपाविउकामस्त मम धम्मायरियस्स वंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगए, पासउ मं भगवं तत्थगए इहगयं-त्तिक वंद, नमंस, वंदित्ता वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी विपि य णं मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सव्वपाणाइवाए पच्चखाए मुसावाए अदिन्नादाणे मेहुणे परिग्गहे कोहे माणे माया लोहे पेजे दोसे कलहे अब्भक्खाणे पेसुन्ने परपरिवाए अरइरइमाया मोसे मिच्छादंसणसल्ले पच्चक्खाए, इयाणि पिणं अहं तस्से अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जाव मिच्छादंसणसल्लं पच्चक्खामि सव्वं असणपाणखाइमसाइमं चउव्विहं पि आहारं पञ्चक्चामि जावज्जीवाए, जंपि य इमं सरीरं इद्वं कंतं पिये जाव विविहा रोगायंका परीस होवसग्गा फुसंतु तिकट्टु एयं पि य णं चरमेहि ऊसास निस्सासे मेहे संलेहणा झूणा सिए भत्तपाणपडियाइ क्खिए पायवोवगए कालं अणवखमाणे विहरइ । तएंणं ते धेरा भगवंतो मेहस्स अण
वोसिरामितिकट्टु से
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