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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०२ शाताधर्मकथा तापितस्वणं तद्वत् उज्वलौ चाक्र्याचश्ययुक्तो, विचित्रौ विविधशोभासंपन्नौ दण्डौ ययोःते नानामगिरत्नखचितकनकर डयुक्त इत्यर्थः, अतएव 'चिल्लि. याओ' देदीप्यमाने-रमणीयशोभासम्पन्नत्वात् 'मुहमवरदीहवालायो' मूक्ष्म दीर्धवाले-मूक्ष्मा:=प्रतला: श्रेष्ठाः, दीर्धाः आयता 'बालाः' केशाययोस्ते तथा, 'संखकुंददगरय अमयमहियफेणधुनसन्निगासाओ' शङरवकुन्ददकरजो. ऽमृतमथितफेनपुञ्जवदुज्वले चामरे गृहीत्वा, मलीलं 'ओहारेमाणीओर' अवधारयन्त्यौ२ तिष्ठतः। ततःखलु एकावरतरुणी श्रृंगारागार० यावत् कुशला, शिविका याबद् 'दुरुहइ' दुरोहति-प्रारोहति, दुरुह्य आरुह्य, मेघ. कुमारस्य 'पुरओं' पुरतः अग्रे 'पुरांत्यमेण' पोरस्त्ये पूर्वदिग्भागे खलु 'चंदप्पभवइर वेरुलियविमलदंड' चन्द्रप्रभवज्रवेडयेविमलदण्डं-चन्द्रप्रमः चन्द्रप्रभा वत् वन्नेवैडूर्यरत्नैः खांचतो निर्मलो दण्डो यम्य तत तालविंटं' तालात उज्ज्वल हैं--चमकीले हैं--तथा जिनकी शोभा विविध प्रकार की है ऐसे दंडों से जो मण्डित है--युक्त हैं-और इसी कारण जो विशेष रूप से रमणीय शोभा संपन्न बने हुए हैं। तथा जिनके बाल सूक्ष्म श्रेष्ट और दीर्घ-लंबे २ हैं-और जो शंग्व, कुंद पुष्प, जलरज, मथित अमृतके फेन पुज के समान उज्वल हैं ऐसे चामरों को लोला सहित लेकर बैठ गई। (तएणं तस्स मेहम्स एगावरतरुणी सिंगारा जाव कुसला भीयं जाव दुरुहइ. दुरूहिता मेहस्स कुमारम्स पुरओ पुरस्थिमेणं चदप्पभवइरवेरुलियविमलदंडं तालटि गहाय चिठ्ठइ) इसके बाद एक उत्तम तरुणी कि जिसका आकार अंगार के निकेतन जैसा शेिष शोभास्पद था और जो अपने कार्य संपादन करने में विशेष पड़ी थी मेघकुमार की स पालखी पर चढ़ी और चढकर वह मेघकु. मार के समक्ष पूर्व दिग्भाग की ओर चन्द्रप्रभा के समान वज्र वैड्य સુવર્ણની જેમ વિશેષ ઉજજવલ પ્રકાશથી ઝળહળતા, એવી અનેકવિધ શોભાઓ ધરાવતા દંડથી યુકત, વિશેષ રમણીય અને શોભા સંપન્ન, જેમના વાળ ઝીણ શ્રેષ્ઠ અને લાંબા છે એવા અને જે શંખ કુંદપુખ, પાણીના રજકણે , અમૃતના મથાએલા ફણના સમૂહના જેવા ઉજજવળ-ચમને વિલાસ પૂર્વક ધારણ કરીને–– मेसी ७. (तएण तस्स मेहस्स एगावरतरूणी सिंगारा लाव कुसला सीयं जाव दुरूहद दुरूहिना मेहस्स कुमारस्स पुरओ पुरस्थिमेण चदप्पभवइरवेरुलियविमलदंडं तालविंट गहाय चिट्ठइ) त्या२मा से उत्तम તરણ—કે જેનો આકાર શંગાર નિકેતનની જેમ સવિશેષ શોભા સંપન્ન હતો, અને જે પિતાના કામને પુરું કરવામાં વિશેષ ચતુર હતી –મેઘકુમારની પાલખી ઉપર ચઢી અને ચઢીને મેઘકુમારની સામે પૂર્વ દિશા તરફ ચન્દ્ર પ્રભાની જેમ હીરા For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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