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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९६ ज्ञाताधर्मकथालमत्र - 3 वृषभः, तुरगः= अश्वः, नर: मनुष्यः, मकर: ग्राहः, विहगः-पक्षी, व्यालक: स, किन्नरः व्यन्तरदेवविशेषः, रुरुः मृगविशेषः शरभः अष्टापदः, चमरः= चमरीगौः, कुञ्जर हस्ती, वनलता एक शाखावान वृक्षः, पद्मलता पद्माकारवतीवल्ली, एतेषां ईहामृगादीनां भक्त यः-रचनाः, ताभिःचित्रां-चित्रयुक्तां। 'घंटावलिमहुरमणहरसरं' घंटावलिमधुर मनोहरस्वरां-घण्टावलीनां घंटापंक्तीनां मधुरः श्रवणप्रियः मनोहरचित्ताकर्षकः स्वरः शब्दो यत्र सा तथा ताम् 'सुभकंतदरिसणिज्ज' शुभकान्त दर्शनीयां-शुभ-मनोहरा, कान्ता कमनीया, अत एव दर्शनीया द्रष्टुं योग्या, ताम् 'निउणोचियमिसितमणिरयण-घंटिया जालपरिखितं' निपुणोपचित देदीप्यमानमणिरत्नघटिकाजालपरिक्षिप्तां-तत्र निपुणैः कुशल., उपचिता-रचिता निर्मिताः अतएव मिसिमिसित' देदीप्यमाना: चाक्यचिक्ययुक्ताः याः मणिरत्नटिकाः, तासां जालं=समूहः तेन परिक्षिप्तां वेष्टिताम्, 'अन्भुग्गयवइयवेदया परिगयाभिरामं' अभ्युद्गत वज्रवेदिका परिगता. भिरामाय, अभ्युद्गता-उन्नता या वज्रवेदिका वज्ररत्नखचिता या वेदिका स्तूपिका सिंहासनाधारभूता तया परिगता-युक्ता, अतएव अभिरामा मनोरमा, ताम्. 'विजाहरजमलजंतजुत्तपिब' विद्याधरस्य यमलयन्त्रयुक्तामिन, तत्र विद्या धर्मश्च विद्याधराश्च इति विद्याधराः, नेषां यमलानि द्वन्द्वानि, तेषां यन्त्रण पद्मलता-पद्माकारवाली वल्ली इन सबके चित्रों की रचना से विशिष्ट (घंटावलीमहुरमणहरसरं) घंटावलियों के श्रवणप्रिय शब्दों से मनोहर, (मुभकंतदरिमणिज्ज) शुभ कान्त अतएव दर्शनीय (निउणो. वचियमिसिमिर्मितमणीरयणघंटियाजालपरिखितं ) कुशल कारीगरों के द्वारा रचित चाक्यचिक्य युक्त मणि रत्न धंटिकाओं के समूह से वेष्टित (अब्भुग्गयवइरवेइयापरिगयाभिरामं ) उन्नत वन वेदिका से युक्त होने के कारण चित्ताकर्षक, (विजाहर जमलजंतजुन पिव) विद्याधर और विद्याधरी के युगल की चेष्टाओ से चित्रित (अचिसहम्स વાળું વૃક્ષ વિશેષ), પલતા, (પદ્માકારવાળી એક લતા) આ બધાના ચિત્રોથી युत, (घंटावलिमहरमणहरसरं) टीमोना मधुर शाही युत, ( मुच कंतदरिसणिज्जं) शुभ, आन्त भेटमा भाटे ४शनीय (निउणोचिय मिसिमिसिंतमणिरयणघोटेयाजालपरिक्खित्तं ) पुश ४ा। वारा यित insती भा २.ननी घटीमाथी युत, (अब्भुग्गयवइरवेइया परि गयाभिराम) अथाहारानी वेदीमाथी युरत होवा महस मनोड२. (विज्जा हरजमलजंतजुत्तंपिव ) विधायक मने विद्याधरीना युगलानी येटासाथी यित्रित For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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