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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे 'जाव' यावत् 'सव्वंग सुरंग' सर्वाङ्ग कुन्दराङ्ग तत्र-सर्वाणि समस्तानि अङ्गानि= शीर्षोदर पृष्ठौरुद्वयभुजद्वयोरोरूपाणि उपलक्षणात् कर्णनासिका चक्षुहस्तपादजंघा नख के शमांसंरूपाप्युपाङ्गानि, तैः सुन्दरम् अङ्गं शरीरं यस्य तं, यद्वा-सुन्दराणि अङ्गानि शरीरावयवाः हस्तादयो यस्य तं सकल शरीरावयवसौन्दर्यसम्पन्न 'दारगं' दारकं-दारयति-विदारयति पित्रादि चिन्तां यः स दारका-पुत्रः तं 'पयाया' प्रजाता-पाजनयत् । 'तएणं' ततः खलु बालक जन्मानन्तरं, 'ताओ' ताःधारिण्याज्ञाकारिण्यस्तदभिप्राय ज्ञाश्च, 'अंगपडियारिओ' अङ्गपरिचारिका: सेविकाः धारिणीं देविं 'नवण्हं मसाणं' नवसु मासेषु 'जाव' यावत् 'दारगं पयागं' दारकं प्रजनितांदारकजन्मदात्री 'पासंति' पश्यन्ति 'पासित्ता' दृष्ट्वा मध्यरात्री के समय में-(सुकुमालपाणिपायं जाव सव्वंगं सुदरं दारगं पायाया) सुकुमार हाथ और पैर वाले ऐसे सर्वाङ्ग सुन्दर पुत्र को जन्म दिया। मस्तक उदर छाती पृष्ठ, दो जांधे, दो भुजा कर्ण नासिका ये आठ अङ्ग हैं, चक्षु, हस्त, पाद जंघा, नख, केश, और मांस ये उपाङ्ग हैं । ये अंग और उपग दोनों ही उस बालक के पति कोमल थे। यहां जो यावत् शब्द आया हैं वह पूर्व में कथित पाठ का सूचक है। दारक शब्द . का यह व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है कि जो पिता माता आदि की चिन्ता को दूर करें वह दारक है। (तएणं ताओ अंगपडियारियाओ धारिणीं देवीं नवण्ड मासाणं जाव दारगं पासंति, पासित्ता सिग्धं, तुरियं, चवलं, वेइयं जेणेवसेणिए राया तेणेव उवागच्छंति) इसके बाद नवमास पूर्ण होने पर दारक (पुत्र) को जन्म देने वाली उस धारिणीदेवी को जब उसकी अंगपरिचारिकाओंने देखा तो देख कर वे शीध्र ही उस पुत्र जन्म के वृत्त को पाणिपायं जाव सव्वंगं सुंदरं दारगं पायाया) सुममा १५५१५ मने साल સુંદર એવા પુત્રને જન્મ આપે. માથું ઉદર, છાતી, પીઠ, બે ઘાઓ, અને બે ભુજા આ मामी छ. आन, ना, या , हस्त, पाह, धा, नप, श, मने भांस ॥ ઉપાડે છે. તે બાળકને આ અો અને ઉપાયો બંને સુંદર હતાં. અહીં જે યાવત’ શબ્દ આવ્યું છે તે પૂર્વ કથિત પાઠને સૂચક છે. દારક શબ્દની વ્યુત્પત્તિલભ્ય અર્થ ये छो भाता पिता वगैरेनी ति मटा3 ते २४ छ. (तपूर्ण ताओ अंगपडियारियाओ धारिणीं देवीं नकण्हं मासाणं नाव दारगं पायायं पासंति, पासित्ता, सिग्धं तुरियं, चवलं, वेइयं जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छंति) त्यामा નવ માસ અને સાડાસાત રાત્રિ પૂરી થયા પછી જ્યારે ધારિણી દેવીએ દાક (પુત્ર)ને જન્મ આપે ત્યારે તેમની અંગ પરિચારિકાઓએ તે જોઈને સત્વરે આ પુત્ર For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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