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विषय
'विज्ञान घन एव....' का अर्थ,
इन्द्रभूति की दीक्षा
पृ० सं०
गणधर २: श्रग्निभूति कर्म विषयक शंका
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श्रद्धा की आवश्यकता
न दिखने के ११ कारण कर्म की सिद्धि : परलोकी है : कर्म विचार संगत है
( ख )
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कर्म यह हिंसा, राग, द्व ेष श्रोर
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कर्म से जन्य हैं । 'अकस्मात् जन्म लेते हैं' के चार अर्थ ४३ पुण्यानुबन्धी श्रादि ४
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कर्म - सिद्धि के अनुमान दान - हिंसादि का फल सामग्री समान होने पर भी भेद कर्म से : मूर्त का कारण मूर्त प्राकाशीय विकार प्रनियत, जब सुख दुःखादि नियत प्रमूर्त श्रात्मा को मूर्त कर्म क्यों लगता है ?
ईश्वर कर्ता क्यों नहीं ?
'पुरुषेवेदं नि' का अर्थ
विधिवाद, श्रर्थवाद, अनुवाद ग्निभूति की दीक्षा
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विषय
गणधर ३ - ( वायुभूति ) शरीर ही जीव है या क्या ?
पृ० सं०
संदेह का कारणः जीव भिन्न
इसके तर्क
प्रत्येक में हो तभी समुदाय में हो,
आवारक व्यंजक नहीं, ज्ञान
नियामक ? अथवा प्राण ? मृत्यु होने पर वातपित्तादि समविकार : साध्य अथवा असाध्य ? वस्तु में दीखता धर्म अन्य का कैसे ?
गरणधर ४ ( व्यक्त)
पंच भूत सत् या प्रसत् सर्वशून्यता के पांच तर्क सर्वशून्यता का खंडन
असत् का संदेह नहीं, संदेह हो वह ज्ञानपर्याय : स्वप्न स्वयं असत् नहीं
स्वप्न स्वप्न सत्य श्रसत्य आदि भेद क्यों ?
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श्रात्मा इन्द्रिय से भिन्न क्यों ? शरीर कर्ता नहीं परन्तु कर्म कर्ता: क्षणिकवादी को त्रुटियां : योग-उपयोगलेश्या श्रादि का देह के साथ
मेल नहीं
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