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गणधर
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साई
शतकम्।
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अंधकार है वहां जहां आदित्य नहीं है, वह है मुर्दा देश जहां साहित्य नही है।
जहां नहीं साहित्य वहां आदर्श कहां है, जहां नहीं आदर्श वहां उत्कर्ष कहां है । संस्कृति और धर्म की रक्षा एक मात्र उस देश के साहित्य पर निर्भर है। जैन साहित्य
साहित्य एक ऐसी चीज है जिसका सांप्रदायिक विभाजन कठिन सा प्रतीत होता है, तथापि उसके निर्माता और धर्मभेद के कारण विभाजन की अनिवार्यता स्वयं सिद्ध हो जाती है। ___भारतीय साहित्य क्षेत्र में जैन साहित्य का स्थान अत्यन्त उच्च है और वह वस्तुतः है भी ठीक । क्योंकि रचयिताओं ने साहित्य का एक भी विषय अछूता न छोड़ा । साहित्य, व्याकरण, कोष, काव्य, अलंकार, नाटक, चम्पू, दर्शन, इतिहास, विज्ञान, शिल्प, पशुविज्ञान, आयुर्वेद, ज्योतिष व कहानी आदि विषयों पर अनेक विद्वत्तापूर्ण, प्रभावोत्पादक, आलोचनात्मक ग्रन्थ जैन साहित्य में विद्यमान हैं।
भारतीय भाषा विज्ञान की अपेक्षा से भी जैन साहित्य का अध्ययन आवश्यकीय ही नहीं प्रत्युत अनिवार्य है। प्राकृत अपभ्रंश, राजस्थानी, गुजराती, कनाड़ी, हिन्दी, तामील, तेलगू, मराठी आदि आदि प्रान्तीय लोकभाषाओं में भी जैनसाहित्य प्रचूरमात्रा में उपलब्ध होता है जिनमें तत्कालिक, सामाजिक, धार्मिक व राजनैतिक तथा सांस्कृतिक चित्र खींचा गया है । अन्य धर्मवालोंने प्रान्तीय लोकभाषा पर उतना ध्यान नहीं दिया है, क्योंकि वे तो विद्वभोग्य भाषा में ही साहित्य रचना में व्यस्थ थे । लोक
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