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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie सार्द्ध गणधर- ग्रन्थो में बडे आदर के साथ करते, पर वे इस विषय में मौन हैं। वराहमिहिर भद्रबाहुस्वामी के बंधु थे, जैसा कि उपरोक्त लेखों से सुस्पष्ट है, यही हमें इस और संकेत करता है कि शतकम् । द्वितीय भद्रबाहु नामक कोई व्यक्ति जैन समाज में हुई है, जिन्होने नियुक्तयें रची, पर वे किंनके शिष्य थे, कहना असंभव है। ___ मुनि श्री चतुरविजयजी और मुनि श्री पुण्यविजयजीने अपने निबंधो में अनेक शास्त्रीय प्रमाणों द्वारा ऐसी अकाट्य युक्तिये ॥११॥ II दी है, जिनसे साफ साफ विदित हो जाता है कि, पञ्चम श्रुतकेवली और नियुक्तिकार भद्रबाहुस्वामी दो प्रथक् पृथक् आचार्य भिन्न २ समय में हुए हैं। संघतिलक सूरिजी सम्यक्त्वसप्ततिका श्री जिनप्रभकृत उपसग्गहर स्तोत्रवृत्ति, प्रबंधचिंतामणि आदि श्वेतांबरीय मान्य ग्रन्थ भद्रबाहुस्वामी को प्रखर ज्योतिषी वराहमिहिर के बंधु गिनाते हैं। वराह मिहिर के चार ग्रन्थ आज तक उपलब्ध हुए है जो अपने ढंग के बडे उत्तम है जो इस प्रकार है: बृहत् संहिता (१८६४-६२ Bibiothica Indica में प्रो० कन ने प्रसिद्ध की ही भाषांतर Journal of Asiatic Society में प्रकट हुआ है) ६. आत्मानंद जन्म शताब्दी स्मारक ग्रन्थ गु० वि० पृ. २०-२६. ७. महावीर जैन विद्यालय रजत महोत्सव ग्रन्थ पृ० १८५-२०१ ८. तत्थ य. चउदस विजा ठाण पारगो छयम्मम्म पवईए भइओ भद्रबाहुनाम माइणो हुत्या तस्स य परम पिम्म सरसिरहमिहरो वराहमिहरो सदोयरो SAHASRKARIGARABAR ॐॐॐCC For Private and Personal Use Only
SR No.020335
Book TitleGandhar Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1944
Total Pages195
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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