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आचार्यस्वरूपनिरूपण
संस्था के प्रमुख के आचार विचार प्रकृति स्वभाव अनुशासन शक्ति आदि गुणों पर दृष्टि डालनी पड़ती है क्योंकि जो गुणदोष प्रमुख में होते हैं वे प्रायः उस के अनुयायियों में आ ही जाते हैं । अतः निष्कर्ष यह निकला कि गच्छ के अच्छे बुरे का दारोमदार प्रायः उस गच्छ के आचार्य पर हैं इस लिये ग्रन्थकार सर्व प्रथम गच्छ के आचार्य के सम्बन्ध में ही कहते हैं |
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मेढी तंव खंभं दिठी जाणं सुउत्तिमं । सूरी जं होइ गच्छस्स, तम्हा तं तु परिक्खए ॥ = ॥
जो गच्छ का मेढी प्रमाण अर्थात् गच्छ के सब कार्य जिस के चारों ओर चक्र काट रहे हैं, जो गच्छ का आधार है, जो गच्छ के सब साधु साध्वियों को संगठित रूप में रख रहा है, जो सब को दृष्टि सदृश हिताहित दिखाने वाला और यान सदृश संसार समुद्र से पार उतार वाला है, उत्तम गुणों से युक्त हैं ऐसे गच्छ के प्राचार्य की सर्वप्रथम परीक्षा करे ।
इत्वम् ॥
मेढी - खलयान का स्तम्भ, जिस के चारों ओर बैल मेथिरालम्बनं स्तम्भः, दृष्टिर्यानं सुत्तमम् । सूरिर्यस्माद् भवति गच्छस्य, तस्मात्तं तु (एव) परीक्षेत ||८|| "मेढी" "मेथि- शिथिर - शिथिल प्रथमे थस्य ढः ॥१२१५|| इति सूत्रेण थस्य ढः ।।
" सुउत्तिमं " 'इः स्वप्नादौ ||| १ |४६|| इति सूत्रेण अकारस्य
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