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गच्छायार पइएन
अपनी व्यवहारकुशलता का एक भव्य आदर्श उपस्थित करना
चाहिये ।।
अव अन्यकार इस बात को एक दृष्टान्त द्वारा भली प्रकार स्पष्ट करते हैं |
जइ कुवि विज्जो, अन्नस्स कहे श्रत्तणो वाहि । विज्जुवएवं सुच्चा, पच्छा स। कम्ममायर ।। १३ ।।
जिगर एक वैद्य चिकित्मा में कुराल होता हुआ भी अपनी बीमारी को किसी दूसरे वैद्य के पास कहता है और जैसा वह कहे वैसा आचरण करता है इसी प्रकार व्यवहारकुशल की साक्षी से अपने दोषों की शुद्धि करते हैं और समाचारी का स्वयं दृढ़तापूर्वक पालन करते हुए अन्य साधुओं के समक्ष आदर्श उपस्थित करते हैं ।।
इस
के अतिरिक्त गच्छ के आचार्य को और क्या करना चाहिये इसका वर्णन करते हैं
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यथा शलोऽपि वैद्यो ऽन्यस्य कथयति आत्मनो व्याधिम । वैवापदशं श्रुत्वा, पश्चात् स कर्म आचरति ।। १३ ।
"विज्जो " 'ब-य्य-य जः' | २४|| इति सूत्रेण द्यस्य जः, अवाद' इति सूत्रेण द्वित्वम् । स्वः संयोगे । इते सूत्रेण ऐवारस्य इकारः ||
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'सु' 'त्व-श्व- द्व-ध्वां च छ ज झाः कचित् ॥१
इति सूत्रेय त्वस्य चः, 'अनादौ -' इति सूत्रेण द्वित्वम् ||
पन्छा" "हस्वात् थ्य - श्चत्स प्सामनिचले' | २|२१||
इति सस्था 'अनादो' इति सूत्रेण द्वित्वम 'द्वितीयतुयोरुपरि पूर्वः' इति सूत्रेण छस्य चः ||
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