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भूमिका ।
चार्य ने भी अपने ग्रन्थ में लिखा है) तथापि मैं अल्पबुद्धि केवल उस पूर्वोक्त महाशय की इच्छा पूरी करने के लिये उस की आज्ञा के अनुसार इस यन्य के बनाने में प्रवृत्त हुआ । और जब इस ग्रन्थ का पूर्वार्ध बन गया तब वह पश्चिमोत्तर देशाध्यक्ष श्रीगवर्नर साहिब की श्राजा से सन् १८५० में बंबई में छापा गया। फिर पहिली बार पीहुई पूर्वार्ध की प्रति सब उठ गई, और इस ग्रन्थ का उत्तरार्ध भी हमारा बनाया हुआ छापने के लिये सिद्ध हुआ । और जब बहुत लोगों को इस समय ग्रन्थ के छपजाने की बड़ी उत्कण्ठा हुई तब पश्चिमोत्तर देश को सब शालाओ के डैरेकर श्री केमसन् साहिब ने इस समय ग्रन्थ के छप जाने में मुझ को बड़ा प्रोत्साहन और साहाय्य किया ।
यह यन्य अनेक अंग्रेजी के और इस देश के बीजगणितों को देख के बनाया है इस में प्रसंग से श्रीभास्कराचार्य के श्लोक भी कहीं २ लिखे हैं । इस का पूर्वार्ध जो पहिली बार छपा था उस से सांप्रत के पूर्वार्ध में बहुत विशेष हैं और अभ्यास के लिये उदाहरण भी पहिले बहुत अधिक दूस में लिखे हैं ।
से
इस पूर्वार्ध में ५ अध्याय हैं ।
१ ले अध्याय में परिभाषा, और उस का अच्छी भांति बोध होने के लिये कुछ उत्थापन के उदाहरण और प्रत्यक्ष बातें इतने विषय हैं ।
२ रे में संकलन, व्यवकलन इत्यादि ६ परिकर्म और अन्त में प्रकीर्णक अर्थात् अग्रिम विषयों के उपयोगी कुछ फुटकर विषय लिखे हैं । इस प्रकीर्णक में पहिले समान वा विषम् दो पक्षों का समशोधन वा पक्षान्तरनयन, संक्रमण, बीजात्मक अदृढ राशि के गुण्यगुणकरूप वयवों का ज्ञान होने के लिये कुछ उपयोगी युक्ति और परस्पर जा दो राशि दृढ़ हैं उन के गुण इतने विषय कहे हैं ।
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