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भूमिका
बने हैं उन में एक श्रीभास्कराचार्य का बीजगणित प्रसिद्ध है और स are मिलते हैं
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अनुमान १५०० बरस पहिले ग्रीस देश में एक डायाफण्टस नामै बिद्वान् हुवा उस ने वहां बीज का बन्य पहिले बनाया ।
चारब वा फारस के लोगों से कोद्र विद्या कभी उत्पन्न नहीं हुई इन्हों ने सब विमानों का संग्रह दूधर उधर से किया तब बीजगणित अवश्य इन्हें ने दूसरे से लिया है इस में संशय नहीं सोभी ग्रीक लोगों से न लिया होगा क्योंकि डायाफण्टस का बीज और चारबों का बीज दून में बड़ा बीच है इसलिये उन्होंने वह बीक लोगों से नहीं लिया यही सिद्ध होता है । तब आवश्य वे जैसा व्यक्तगणित हिन्दुस्थान से ले गये वैसा बीजगणित भी यहां से ले गये होंगे यह सम्भाव्य है । फिर आरब से युरोप में गया । यो समय पृथ्वी में बीजगणित हिन्दुस्थान से गया है ।
ये
युरोप में बीजगणित का ग्रन्थ पहिले ईसवी सन् १४७८ में लुकास star नामक एक विद्वान इटली देश में ले गया फिर वहां से जर्मनी देश में गया वहां सन् १५४४ में स्त्रिफेल नामक एक विद्वान ने धन, ऋण और मूल दून को योतित करने के लिये क्रम से +, चिह्न ठहराए । फिर थोड़ेही काल से सन् १५५० में राबर्ट रिकार्ड ने इग्लंड में इस विद्या का प्रचार किया यों युरोप में यह विका फेरा गई। वह अब वहां परमावधि के निकट पहुंची है संप्रति युरोपियन रोति से जो २ बीज के विषय सिद्ध होते हैं वे हमारे भारतवर्षीय बोलों से किसी प्रकार से साध्य नहीं हैं इस कारण वे बोज के प्रकार इस देश में प्रसिद्ध होने के लिये पहिले श्रीयुत डी. एफ्. मेक्लोड़ साहिब ने (जो फिर पंजाब के गवर्नर हुए थे) मुझ को यह ग्रन्थ हिन्दी में बनाने की आज्ञा दिई । फिर यद्यपि बीज का ग्रन्थ करना यह अतिशय सूक्ष्म बुद्धि जिस की होगी उसी का काम है क्योंकि यह केवल बुद्धि का व्यापार है ( यों भास्करा
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