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दीवा० व्याख्या०
॥ ४३ ॥
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धारनेवाले साधु सवविहार करेंगे | और जो आहार पानीके लोलुपी गीतार्थका वचन नहीं अंगीकार करेंगे अविवेकी ऐसे वांही रहेंगे ॥ बाद सत्तरह (१७) दिनतक वर्षात् होगा ॥ बहुतवर्षात् होनेसें कलंकीराजाका नगर जलसे | आच्छादित होजायगा || गंगाका जल नगरकेजलकेसाथ इकट्ठा होजायगा ॥ कलंकीनगरसे भागके कहीं ऊंचेस्थल में | जाकेरहेगा | जलका उपद्रव शांतहोनेसे नवीन नगर बसावेगा ॥ जलके प्रवाहसे नन्दराजाकी बनाई भई नव सोनेकी | डुंगरी प्रगटहोगी | उन्होंको देखके बहुत लोभी होगा ॥ पहले जो मनुष्य कर नहीं देते थे उन्हों के पास कर लेगा और | करदेनेवाले उन्होंपर बहुतकर लगावेगा ॥ बहुत प्रकारका नवीन कर करेगा ॥ धनवानोंपर झूठा कलंक देकर उन्होंसे धनलेगा अनेक प्रकारका छलकरके लोगोंका धन हरण करेगा । तब सब लोग निर्धन होजावेंगे ॥ चांदी सोना वगैरहः सब धन नष्टहोजायगा । तब चर्ममई दाम चलेंगे ॥ वैश्य, पाषंडी, सर्व दर्शनियोंके पासकर लेगा । कलंकी के राज्यमें लोगों के घरोंमें धातुमय पात्र नहींरहेगा । तब वृक्षों के पत्तों में लोग भोजन करेंगे ॥ और कलंकी राजा मार्ग में जाते हुए साधुओंको देखके लोभी भया ऐसा भिक्षाका छट्टां भाग मांगेगा | तब सब साधु इकट्ठेहोके | | शासनदेवताका आराधनके लिये काउसग्ग करेंगे | तब शासनदेवी प्रगट होके साधुओं के भिक्षाके छट्ठा भाग मागते हुए राजाको निवारण करेंगी । राजा वेषधारियों का वेष छुड़ादेगा ऐसा महादुष्ट होगा | और कितने काल गए बाद भिक्षाका छट्टाभाग और मागेगा । तब धनके वास्ते आचार्यादि सब साधुओं को इकट्ठा करके वाडेमें रोकेगा ॥ तब
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पंचम
आरेका
स्वरूप
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