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निश्चय क्या प्रशंसतेहो जो सातधातुओंसे निष्पन्न हुआ शरीर अन्नसे जीनाजिसका वह देवोंकरके अचाल्य ऐसा कौन
माने मेरे गानरसके पूरकरके किन्होंका विवेक प्रमुख गुणनहीं नष्टहोवे अपितुहोवेही ॥ वहांजाके सूर्ययशाराजाको टू मैं जल्दी व्रतसे भ्रष्टकरूंगी ॥ ऐसी प्रतिज्ञाकरके रंभासहित उर्वशीहाथमें वीणाधारती वर्गसे पृथ्वीपर उतरती
भई।बाद अयोध्यानगरीके नजदीक उद्यानमें श्रीऋषभदेवः खामीके मंदिरमें मोहोत्पादक अतिअद्भुत रूपबनाके गाना कर्ती भई ॥ उनके गानेसे मोहितहुआ पक्षी, मृगः, सादिक आके चित्रलिखितके जैसे अथवा पाषाणघटित
जैसे निश्चलनेत्ररहतेभये ॥ इधरसे श्रीसूर्ययशाराजा घोड़ाफिराके पीछे आताहुआ मार्गमें उन्होंकी अत्यन्तमधुरहै गानेकी धुनी सुनताभया तब घोड़ा, हाथी, प्यादल, पगमात्रभी चलनेको समर्थनहींहुआ ॥ यह खरूपदेखके राजा | | मंत्रीसे आदरसहितवोला अहो मंत्री संसारमें गानजैसा सुखदाई कोईनहीं दीसेहै । जिसकेवशसे यह पशुभी मोहित हुयेहैं ॥ नादसे देव, दानव, राजा, स्त्रीवगैरेह सवप्रायः वसहोवेहै । इसलिये अपनेभी श्रीऋषभदेवःस्वामीको नमस्कारकरनेको उसमंदिरमेंजावें वहां गयेभये यह गानेकाखादभी पावेंगे॥ऐसा विचारके उसगानसे मोहितहुआ राजा मंत्रीसहितः जिनमंदिरमें गया ॥ वहां हाथों में वीणाधारती गीतध्वनिकर्ती श्रीकामदेवकी स्त्रीजैसी दिव्यसौंदर्यवाली ऐसी दोकुमारिका देखके ॥ स्नेहकेचक्षुडाले ऐसे कामबाणोंसे हृदयमें वींधाहुआ राजा विचारताहुआ ॥ इन्होंका यह अद्भुतरूप किसपुण्यवान्के भोगकेवास्ते होगा ॥ तब राजा वारंवार उन्होको देखताहुआ श्रीयुगादीशके
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