________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अट्टाहिका उस राजाके राधावेधकेपणसे प्राप्तभई कनकविद्याधरकी पुत्रीजैश्रीनामकी पटरानी थी और भी उसराजाको बहुतसी सूर्ययशाव्या० रानियोंथी ॥ सूर्ययशाराजा चारपर्वी अष्टमी, चतुर्दशी विशेषकरके उपवासवगैरहः पचखान पौषधादिक तपकरके राजा कथा
|आरधता भया ॥ जीवितके आदर जैसा पर्वादर इसराजाकेमनमें अत्यन्त वल्लभ है ॥ उससे यहराजा जीवतव्य
सेभी पर्वकी रक्षा जादाकरेहै ।उसके अनन्तर एकदा प्रस्तावमें सौधर्म इन्द्र सुधर्मासभामें बैठाहुआ ज्ञानसे सूर्ययशा | राजाका पर्वाराधनमें निश्चयजानकर चमत्कारः पायाहुआ मस्तक धूनता भया । तब उर्वशीदेवी जगत्को वश-| करनेकी शक्तिधारनेवाली अकस्मात् देवेन्द्रका शिरकम्पदेखकर बोली कि हे खामिन् इसवक्तमें आश्चर्यजनक नाटक वगैरहः-कोई कारण नहीं दीखताहै तो कारणविना स्वामीने प्रसन्नहोके मस्तकका धूनना कैसाकिया ॥
अर्थात् किसकारणसे यह शिरःकम्पहुआ। तब देवेन्द्रः बोला इसवक्त मैंने ज्ञानदृष्टिसे भरतक्षेत्रमें श्रीऋषभःदेवखाहै मीका पौत्र भरतचक्रवर्तीका पुत्रः अयोध्याका खामी श्रीसूर्ययशानामका राजा सात्विकों में शिरोमणि देखा ॥ वह
राजा अष्टमी, चतुर्दशीपर्वके तपमे बहुतप्रयत्न करनेवाला है।देवभीनहीं चलासकते ॥जो सूर्य पूर्वदिशाको छोडकर पश्चिमदिशामें ऊगे और मेरुपर्वत वायु से कांपे अथवा समुद्रः मर्यादाछोडे कल्पवृक्षः निष्फलहोवे तथापि यह है
राजा कण्ठगतप्राणः होवेतोभी तीर्थकरकी आज्ञाके जैसा अपनानिश्चयछोडेनहीं बाद उर्वशीदेवी इन्द्रःका प्रवचन सुनके कुछमनमें विचारके उत्तरदिया ॥ हेमहाराज युक्तायुक्तके जाननेवाले आपहो ॥ मनुष्योंमे ऐसा
For Private and Personal Use Only