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हापर्व में ब्रह्मत्रतपालना सर्वथा स्त्रीसंगवर्जना परखीसेवनतो दोनो लोक में विरुद्ध होनेसे सर्वथा नहि करना ४ ६पांचवेआश्रवके त्यागमे धनधान्यादिनवप्रकारके परिग्रहकानियमकरना परिग्रहकीतृष्णा अपरिमित नहि धारनी
इच्छापरिमान करना ५ और इस पर्वृषणापर्वमें कषायरोधकरना कषाय चार (४) हे क्रोध १ मान २ माया ३|| प्रलोभ ४ इहोंका त्याग करना दशवैकालिकमें कहा भी हे
कोहो पीईपणासेइ माणो विणयनासणो । माया मित्ताणीनासेइ लोहोसबविणासणो ॥१॥ 8| अर्थ-क्रोधके उदयसे लडाई होतीहे बहुतकालकी प्रीतीका नास होता हे १ मानके उदय से विनय का नास होता हे श्रेष्ठ ध्यानमें रहे हुवे मुनिको अभिमानसे केवलज्ञान की प्राप्तीमें अंतराय हुवाहे जैसे बाहुबलि राजर्षि १२ महिनेतक काउसग्गमें खडे रहे तथापी केवलज्ञान नहि हुवा जब मानछोडा तभी केवलहुवा २ मायाके उदयमें मित्रता नहि रहेहे ३ लोभतो सबका नास करनेवालाहे ४ मायालोभके उदयमें तो बहुतदोषहोवेहे
इससे ४ कषायोंका त्याग करना इसलिये शुभ आचारहे जिन्होंका ऐसे श्रावकों को आश्रव कषायका रोध हैकरना ऐसा कहा और इस पर्व में जो कर्तव्यहे वही श्रावक विशेषणद्वारा कहतेहे, कैसे श्रावक सामायिक जिन
पूजा और तप इन्हों का करना उनमें तत्पर इसकहनेकर इस पर्वमें सुश्रावकोंको सामायककरना सामायक
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चा.व्या.४
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