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चातुमासिक
॥ १८ ॥
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पास मांगती हुं तब राजाभी उसकेविनयसे रंजितहोके उसचोरको जीवितदानदेके रानीको सोंपदिया रानी उसचोरको अपनेघरलेजाके सामान्यभोजनकराके कहा मेनें तेरेकुं जीवितदानदिया और अब चोरीकरनानहिं तब यह चोर बहुतखुसीहुवा तव सोकों इसके कहनेलगी अरी तेनें तो इसका कुछमी सत्कार नहिकीया हमनेतो लाखोधनखर्चके इस का सत्कारकीयाहे उसवक्त उन्होके परस्परउपकार केविस यमें बहुतविवाद होनेसे राजाने चोरको बुलाके पूछा की तेराउपकार किसने जादाकीया चोरबोला हे महाराज ४ दिन तक मैंने मरनेकेभयसे कुछभी भोजनादिककासुख नहिमाना आज इस महारानीकेमुखसे अभय - दान सुननेसे परमसुखका अनुभवकरताहुं इसीकारणसे हेमहाराज ? आज ५ मीरानीका सबसे जादा उपकारहे ऐसासुनके राजादिकोने पांचमी रानीकी प्रशंसा करके पटरानीकरी," इसकारनसे सर्वदानोंमे अभय दानश्रेष्ठकहा इसीसे सुश्रावकों को इसपर्युषणापर्व्व में खांडना पीसना वस्त्रधोना वगेरह आरंभवर्जना तेली लोहार भडभुंजे ओर भी कठोरकर्मकरनेवालोसे वचनसे या धन खर्च के भी आरंभछोडाना सक्तिप्रमाणे कैदीमी छोडाना अमारीघोसणाकराना जिसकिसप्रकारसे जीवरक्षा करना ? दूसरेआश्रव के त्याग में मृषा वचनइसपर्व्व में नहिकहना गालीप्रमुख नहिदेना सर्वथावचनसुद्धिकरनी २ तीसरे आश्रव के त्याग में चौरीका सर्वथा त्याग - कराना द्रव्य प्राणीयोंका वाह्यप्राणरूप होनेसे उसका लेना मरनेरूपकष्टका हेतु है ३ चोथे आश्रवके त्यागमें पर्युषण
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व्याख्यानम्.
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