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|४ कीर्तिदान ५ ये ५ प्रकारका उसमें अभयदान-सुपात्रदानका मोक्षरूप फल है और ३ दानका भोगप्राप्तिरूप
फल है-यहां अभयदानपर दृष्टान्त है । जैसे राजग्रह नगरमें सभामें बैठे भए श्रेणिक राजाने पूछा कि इस वक्तमें 7 है इस नगरमें क्या वस्तु सुलभ हैं और खादिष्ट है तब क्षत्रिय बोले महाराज मांस सुलभ है और खादिष्ट है तब
अभयकुमारने विचारा कि ये लोग निर्दयी है अब दूसरी वक्त ऐसा नहीं बोले वैसाही करूं वाद रात्रिमें सर्व क्षत्रियों के घरों में अभयकुमार पृथक् २ जाके वोला अहो क्षत्रियजनों ! राजकुमारके शरीरमें महाव्याधि उत्पन्न हुई है, जो मनुष्यसंबंधी कलेजेका २ टांक माँस दिया जावे तो वह जीवे, और कोई भी उपायसे जीवे नहीं ऐसा वैद्यने कहा है इस कारणसे तुम लोग राजाकी आजीविका खाते हो सो ये कार्य तुम्हींको करना होगा। तब १ क्षत्री वोला १ हजार सोनइया लो मगर मुझे छोडो अभयकुमारने सोनइये लिये एक रात भरमें घर २४ फिरके लाखों सोनइये इकट्ठे किये । प्रभातमें राजसभामें वह धन क्षत्रियोंको दिखाया और ऐसे कहा कि अरे लोको ! तुम कहते थे कि मांस सुलभ है मगर आज तो इतने द्रव्यसे भी मनुष्यके कलेजैका दो टांक मांस नहीं मिला तब क्षत्रिय लजित हुए अभयकुमारने उनको मांस खानेका त्याग कराया इस अर्थमें श्लोक है। "स्वमांसं दुर्लभं लोके, लक्षणाऽपि न लभ्यते । अल्पमूल्येन लभ्येत, पलं परशरीरजं ॥१॥
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