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दीवा० अर्थः-श्रीवासुपूज्यखामीको नमस्कार करके पुण्यका प्रकाशक रोहिणीकी कथायुक्तः रोहिणीव्रतः कहते हैं | रोहिणी व्याख्या० ॥ १॥ श्रीचंपानगरीमें श्रीवासुपूज्यखामीका पुत्र मघवानामका राजा राज्य करे उसके लक्ष्मीनामकी रानी * कथा. ॥८५॥
सुशीला सदाचारवती उन्होंके आठ पुत्रोंके ऊपर एक रोहिणी नामकी पुत्री भई क्रमसे चौसठ कला पढी रूपलावण्यवती सौभाग्यादिगुणवती यौवनअवस्था पाई ऐसी रोहिणी कन्याको देखके राजा चिंतातुर भया इस कन्याके योग्य वर कौन होगा बाद स्वयंवरमंडपकराके देश देशके राजा और राजकुमरोंको बुलाए बड़ेआडंबरसे
राजालोग आए खयंवर मंडप में सिंहासनोंपर बैठे उससमय रोहिणीकन्या खानविलेपन करके क्षीरोदक वस्त्रपहरके ६ मोतियोंके आभूषणोंसे अलंकृत साक्षात देवकुमारीके जैसी पालकीमें बैठीभई सखियोंके परिवारसहित स्वयंवरमें |आई ॥ उस रोहिणी कन्याको देखकर सब लोग चित्र लिखित जैसे हुए बाद एकप्रतिहारी रोहिणीके आगे चलती
भई राजा और राजकुमारोंका नाम गोत्र बल, उमर, यशवगैरहःका वर्णन करे बाद कुमरीने और राजकुमारोंको टू वर्जके नागपुर नगरका बीतशोकराजाका पुत्र अशोक (चित्रसेन) कुमारके कंठमें वरमाला डाली तब सब लोग
॥८५॥ है हर्षितभये राजाने पाणिग्रहणका उत्सव बड़े आडंबरसे किया भोजन, वस्त्र तांबूलादि लेके राजा लोग अपने अपने |ठिकानेगए अशोक (चित्रसेन) कुमरभी वहां कितने दिन रहके स्त्रीसहित हाथी घोड़ा, रथप्यादलसहित प्रस्थानकरके नागपुरके समीपमें आया तब बीतशोकराजाने महोत्सवसे नगरमें प्रवेशकराया बाद कुमर रोहिणीके साथ विषय सुख
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